कहानी संग्रह >> प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह) प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ
अनिष्ट शंका
चाँदनी रात, समीर के सुखद झोंके, सुरम्य उद्यान। कुँवर अमरनाथ अपनी विस्तीर्ण छत पर लेटे हुए मनोरमा से कह रहे थे–तुम घबराओ नहीं, मैं जल्द आऊँगा।
मनोरमा ने उनकी ओर कातर नेत्रों से देखकर कहा–मुझे क्यों नहीं लेते चलते?
अमरनाथ–तुम्हें वहाँ कष्ट होगा, मैं कभी यहाँ रहूँगा, कभी वहाँ, सारे दिन मारा-मारा फिरूँगा, पहाड़ी देश है, जंगल और बीहड़ के सिवाय बस्ती का कोसों पता नहीं, उन पर भयंकर पशुओं का भय। तुमसे यह तकलीफें न सही जायँगी।
मनोरमा–तुम भी तो इन तकलीफों के आदी नहीं हो।
अमरनाथ–मैं पुरुष हूँ, आवश्यकता पड़ने पर सभी तकलीफों का सामना कर सकता हूँ।
मनोरमा (गर्व से)–मैं भी स्त्री हूँ, आवश्यकता पड़ने पर आग में कूद सकती हूँ। स्त्रियों की कोमलता पुरुषों की काव्य-कल्पना है। उनमें शारीरिक सामर्थ्य चाहे न हो पर उनमें वह धैर्य और साहस है जिस पर काल की दुश्चिंताओं का जरा भी असर नहीं होता।
अमरनाथ ने मनोरमा को श्रद्धामय दृष्टि से देखा और बोले–यह मैं मानता हूँ, लेकिन जिस कल्पना को हम चिरकाल से प्रत्यक्ष समझते आये हैं वह एक क्षण में नहीं मिट सकती। तुम्हारी तकलीफ मुझसे न देखी जायेगी, मुझे दुःख होगा! देखो इस समय चाँदनी में कितनी बहार है।
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