कहानी संग्रह >> प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह) प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ
कैलाशकुमारी–मैं इसे अपना धर्म नहीं समझती। मेरे लिए अपनी आत्मा की रक्षा के सिवा और कोई धर्म नहीं?
जागेश्वरी–बेटी, गजब हो जायगा, दुनिया क्या कहेगी?
कैलाशकुमारी–फिर वही दुनिया? अपनी आत्मा के सिवा मुझे किसी का भय नहीं।
हृदयनाथ ने जागेश्वरी से यह बातें सुनीं तो चिंता-सागर में डूब गये। इन बातों का क्या आशय? क्या आत्म-सम्मान का भाव जाग्रत हुआ है या नैराश्य की क्रूर क्रीड़ा है? धनहीन प्राणी को जब कष्ट-निवारण का कोई उपाय नहीं रह जाता तो वह लज्जा को त्याग देता है। निस्संदेह नैराश्य ने यह भीषण रूप धारण किया है। सामान्य दशाओं में नैराश्य अपने यथार्थ रूप में आता है, पर गर्वशील प्राणियों में वह परिमार्जित रूप ग्रहण कर लेता है। यहाँ पर हृदयगत कोमल भावों को अपहरण कर लेता है–चरित्र में अस्वाभाविक विकास उत्पन्न कर देता है–मनुष्य लोक-लाज और उपहास की ओर से उदासीन हो जाता है, नैतिक बंधन टूट जाते हैं। यह नैराश्य की अंतिम अवस्था है।
हृदयनाथ इन्हीं विचारों में मग्न थे कि जागेश्वरी ने कहा–अब क्या करना होगा?
हृदयनाथ–क्या बताऊँ।
जागेश्वरी–कोई उपाय है?
हृदयनाथ–बस, एक ही उपाय है, पर उसे जबान पर नहीं ला सकता।
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