कहानी संग्रह >> प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह) प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ
बुढ़िया ने चिढ़ कर कहा–तेरी नींद आज कैसे खुल गई, मैं जगाने गई होती तो मारने उठता।
डाक्टर–मैंने सब माजरा बुढ़िया से कह दिया है, इसी से पूछो।
बुढ़िया–कुछ नहीं, तूने मूठ चलाई थी रुपये इनके घर की महरी ने लिये हैं, अब उसका अब तब हो रहा है।
डाक्टर–बेचारी मर रही है कुछ ऐसा करो कि उसके प्राण बच जायँ!
बुद्धू–यह तो आपने बुरी सुनायी, मूठ को फेरना सहज नहीं है।
बुढ़िया–बेटा, जान जोखिम है, क्या तू जानता नहीं है। कहीं उल्टे फेरनेवाले पर ही पड़े तो जान बचना ही कठिन हो जाय।
डाक्टर–अब उसकी जान तुम्हारे ही बचाये बचेगी, इतना धर्म करो।
बुढ़िया–दूसरे की जान की खातिर कोई अपनी जान गढ़े में डालेगा?
डाक्टर–तुम रात-दिन यही काम करते हो, तुम उसके दाँव-घात सब जानते हो। मार भी सकते हो, जिला भी सकते हो। मेरा तो इन बातों पर बिल्कुल विश्वास ही न था, लेकिन तुम्हारा कमाल देख कर दंग रह गया। तुम्हारे हाथों कितने ही आदमियों का भला होता है, उस गरीब बुढ़िया पर दया करो।
बुद्धू कुछ पसीजा, पर उसकी माँ मामलेदारी में उससे कहीं अधिक चतुर थी। डरी, कहीं यह नरम हो कर मामला बिगाड़ न दे। उसने बु्द्धू को कुछ कहने का अवसर न दिया। बोली–यह तो सब ठीक है,पर हमारे भी बाल-बच्चे हैं! न जाने कैसी पड़े। वह हमारे सिर आवेगी न? आप तो अपना काम निकाल कर अलग हो जायेंगे। मूठ फेरना हँसी नहीं है।
बुद्धू–हाँ बाबू जी, काम बड़े जोखिम का है।
डाक्टर–काम जोखिम का है तो मुफ्त तो नहीं करवाना चाहता।
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