कहानी संग्रह >> प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह) प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
|
260 पाठक हैं |
मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ
केसर महरी कपड़ों की एक गठरी ले कर बाहर जाती हुई दिखायी दी। रतनसिंह ने पूछा–क्या तुम भी अपने कपड़े देने जाती हो?
केसर ने लजाते हुए कहा–हाँ, सरकार जब देश छो़ड रहा है तो मैं कैसे पहनूँ?
रतनसिंह ने गौरा की ओर आदेशपूर्ण नेत्रों से देखा। अब वह विलम्ब न कर सकी। लज्जा से सिर झुकाये संदूक खोल कर कपड़े निकालने लगी। एक संदूक खाली हो गया तो उसने दूसरा संदूक खोला।
सबसे ऊपर एक सुंदर रेशमी सूट रखा हुआ था जो कुँवर साहब ने किसी अँगरेजी कारखाने में सिलाया था।
गौरा ने पूछा–क्या सूट भी निकला दूँ।
रतन–हाँ, हाँ, इसे किस दिन के लिए रखोगी?
गौरा–यदि मैं यह जानती की इतनी जल्दी हवा बदलेगी तो कभी यह सूट न बनवाने देती। सारे रुपये खून हो गये।
रतनसिंह ने कुछ उत्तर न दिया। तब गौरा ने अपना संदूक खोला और जलन के मारे स्वदेशी-विदेशी सभी कपड़े निकाल-निकाल कर फेंकन लगी। वह आवेश-प्रवाह में आ गयी। उनमें कितनी ही बहुमूल्य फैंसी जाकेट और साड़ियाँ थीं जिन्हें किसी समय पहन कर वह फूली न समाती थी। बाज-बाज साड़ियों के लिए तो उसे रतनसिंह से बार-बार तकाजे करने पड़ते थे। पर इस समय सब की सब आँखों में खटक रही थीं। रतनसिंह उसके भावों को ताड़ रहे थे। स्वदेशी कपड़ों का निकाला जाना उन्हें अखर रहा था, पर इस समय चुप रहने ही में कुशल समझते थे। तिस पर भी दो-एक बार वाद-विवाद की नौबत आ ही गयी। एक बनारसी साड़ी के लिए तो वह झगड़ बैठे, उसे गौरा के हाथों से छीन लेना चाहा, पर गौरा ने एक न मानी, निकाल ही फेंका। सहसा संदूक में से एक केसरिया रंग की तनजेब की साड़ी निकल आयी जिस पर पक्के आँचल और पल्ले टँके हुए थे गौरा ने उसे जल्दी से ले कर अपनी गोद में छिपा लिया।
|