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प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :384
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8582

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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ


रतनसिंह ने पूछा–कैसी साड़ी है!

गौरा–कुछ नहीं, तनजेब की साड़ी है। आँचल पक्का है।

रतन–तनजेब की है तो वह जरूर ही विलायती होगी। उसे अलग क्यों रख लिया? क्या वह बनारसी साड़ियों से अच्छी है?

गौरा–अच्छी तो नहीं है, पर मैं इसे न दूँगी।

रतन–वाह, विलायती चीज को मैं न रखने दूँगा। लाओ इधर।

गौरा–नहीं मेरी खातिर इसे रहने दो।

रतन–तुमने मेरी खातिर से एक भी चीज न रखी, मैं क्यों तुम्हारी खातिर करूँ?

गौरा–पैरों पड़ती हूँ, जिद न करो।

रतन–स्वदेशी साड़ियों में जो चाहो रख लो, लेकिन इस विलायती चीज को मैं न रखने दूँगा। इसी कपड़े की बदौलत हम गुलाम बने, यह गुलामी का दाग मैं अब नहीं रख सकता। लाओ इधर।

गौरा–मैं इसे न दूँगी, एक बार नहीं हजार बार कहती हूँ कि न दूँगी।

रतन–मैं इसे लेकर छोड़ूँगा, इस तरह गुलामी के पटके को, इस दासत्व के बंधन को किसी तरह न रखूँगा।

गौरा–नाहक जिद करते हो।

रतन–आखिर तुमको इससे क्यों इतना प्रेम है?

गौरा–तुम तो बाल की खाल निकालने लगते हो। इतने कपड़े थोड़े हैं? एक साड़ी रख ली तो क्या?

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