कहानी संग्रह >> प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह) प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ
मैं घर की ओर चला तो मन में विचार करने लगा कि किस प्रकार अपने क्रोध को प्रकट करूँ। क्यों न मुँह ढाँक कर सो रहूँ। अम्बा जब पूछे तो कठोरता से कह दूँ कि सिर में पीड़ा है, मुझे तंग मत करो। भोजन के लिए उठाये तो झिड़क कर उत्तर दूँ। अम्बा अवश्य समझ जायगी कि कोई बात मेरी इच्छा के प्रतिकूल हुई है। मेरे पाँव पकड़ने लगेगी। उस समय अपनी व्यंग्यपूर्ण बातों से उसका हृदय बेध डालूँगा। ऐसा रुलाऊँगा कि वह भी याद करे। पुनः विचार आया कि उसका हँसमुख चेहरा देख कर मैं अपने हृदय को वश में रख सकूँगा या नहीं। उसकी एक प्रेम-पूर्ण दृष्टि, एक मीठी बात, एक रसीली चुटकी मेरी शिलातुल्य रुष्टता के टुकड़े-टुकड़े कर सकती है। परन्तु हृदय की इस निर्बलता पर मेरा मन झुँझला उठा। यह मेरी क्या दशा है, क्यों इतनी जल्दी मेरे चित्त की काया पलट गयी? मुझे पूर्ण विश्वास था कि मैं इन मृदुल वाक्यों की आँधी और ललित कटाक्षों के बहाव में भी अटल रह सकता हूँ और कहाँ अब यह दशा हो गयी कि मुझसे साधारण झोंके को भी सहन करने की सामर्थ्य नहीं! इन विचारों से हृदय में कुछ दृढ़ता आयी, तिस पर भी क्रोध की लगाम पग-पग पर ढीली होती जाती थी। अंत में मैंने हृदय को बहुत दबाया और बनावटी क्रोध का भाव धारण किया। ठान लिया कि चलते ही चलते एकदम से बरस पडूँगा।
ऐसा न हो कि विलम्बरूपी वायु इस क्रोधरूपी मेघ को उड़ा ले जाय, परंतु ज्यों ही घर पहुँचा, अम्बा ने दौड़ कर मुन्नू को गोदी में ले लिया और प्यार से सने हुए कोमल स्वर में बोली–‘‘आज तुम इतनी देर तक कहाँ घूमते रहे? चलो, देखो, मैंने तुम्हारे लिए कैसी अच्छी-अच्छी फुलौड़ियाँ बनायी हैं।’’ मेरा कृतिम क्रोध एक क्षण में उड़ गया। मैंने विचार किया, इस देवी पर क्रोध करना भारी अत्याचार है। मुन्नू अबोध बालक है सम्भव है कि वह अपनी माँ का स्मरण कर रो पड़ा हो। अम्बा इसके लिए दोषी नहीं ठहरायी जा सकती। हमारे मनोभाव पूर्ण विचारों के अधीन नहीं होते, हम उनको प्रकट करने के निमित्त कैसे-कैसे शब्द गढ़ते हैं, परंतु समय पर शब्द हमें धोखा दे जाते हैं और वे ही भावनाएँ स्वाभाविक रूप से प्रकट होती हैं मैंने अम्बा को न तो कोई व्यंग्यपूर्ण बातें ही कहीं और न क्रोधित हो मुख ढाँक कर सोया ही, बल्कि अत्यंत कोमल स्वर में बोला–मुन्नू ने आज मुझे अत्यंत लज्जित किया। खजानची साहब ने पूछा कि तुम्हारी नयी अम्मा तुम्हें प्यार करती हैं या नहीं तो ये रोने लगा। मैं लज्जा से गड़ गया। मुझे स्वप्न में भी यह विचार नहीं हो सकता कि तुमने इसे कुछ कहा होगा। परंतु अनाथ बच्चों का हृदय उस चित्र की भाँति होता है जिस पर एक बहुत ही साधारण परदा पड़ा हुआ हो। पवन का साधारण झोंका भी उसे हटा देता है।
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