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प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :384
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8582

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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ


ये बातें कितनी कोमल थीं, तिस पर भी अम्बा का विकसित मुखमंडल कुछ मुरझा गया। वह सजल नेत्र होकर बोली–इस बात का विचार तो मैंने यथासाध्य पहले ही दिन से रखा है। परंतु यह असम्भव है कि मुन्नू के हृदय से माँ का शोक मिटा दूँ। मैं चाहे अपना सर्वस्व अर्पण कर दूँ, परंतु मेरे नाम पर जो सौतेलेपन की कालिमा लगी हुई है, वह मिट नहीं सकती।

मुझे भय था कि इस वार्तालाप का परिणाम कहीं विपरीत न हो, परन्तु दूसरे ही दिन मुझे अम्बा के व्यवहार में बहुत अंतर दिखायी देने लगा। मैं उसे प्रातः से सायंकाल पर्यंत मुन्नू की ही सेवा में लगी हुई देखता, यहाँ तक कि उस धुन में उसे मेरी भी चिंता न रहती थी। परंतु मैं ऐसा त्यागी न था कि अपने आराम को मुन्नू को अर्पण कर देता। कभी-कभी मुझे अम्बा की यह अश्रद्धा न भाती, परंतु मैं कभी भूल कर भी इसकी चर्चा न करता। एक दिन मैं अनियमित रूप से दफ्तर से कुछ पहले ही आ गया। क्या देखता हूँ कि मुन्नू द्वार पर भीतर की ओर मुख किये खड़ा हैं। मुझे इस समय आँख-मिचौनी, खेलने की सूझी। मैंने दबे पाँव पीछे से जा कर उसके नेत्र मूँद लिये। पर शोक! उसके दोनो गाल अश्रुपूरित थे। मैंने तुरंत दोनों हाथ हटा लिये। ऐसा प्रतीत हुआ मानो सर्प ने डस लिया हो। हृदय पर एक चोट लगी। मुन्नू को गोद में लेकर बोला–मुन्नू, क्यों रोते हो? यह कहते-कहते मेरे नेत्र भी सजल हो आये। मुन्नू आँसू पी कर बोला–जी नहीं रोता नहीं हूँ।

मैंने उसे हृदय से लगा लिया और कहा–अम्माँ ने कुछ कहा तो नहीं?

मुन्नू ने सिसकते हुए कहा–जी नहीं, मुझे वह बहुत प्यार करती हैं।

मुझे विश्वास न हुआ, पूछा–वह प्यार करती तो तुम रोते क्यों?

उस दिन खजानची के घर भी तुम रोये थे। तुम मुझसे छिपाते हो। कदाचित् तुम्हारी अम्माँ अवश्य तुमसे कुछ क्रुद्ध हुई हैं।

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