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कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :225
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8584

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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ


पुजारी–मंदिर का द्वार खुला पड़ा है। मैंने खट-खट की आवाज सुनी। सहसा सुखिया बरामदे से निकल कर चबूतरे पर आयी और बोली–चोर नहीं है मैं हूँ; ठाकुर जी की पूजा करने आयी थी। अभी तो अंदर गयी भी नहीं। मार हल्ला मचा दिया।

पुजारी ने कहा–अब अनर्थ हो गया! सुखिया मंदिर में जाकर ठाकुर जी को भ्रष्ट कर आयी!

फिर क्या था, कई आदमी झल्लाये हुए, लपके और सुखिया पर लातों और घूसों की मार पड़ने लगी। सुखिया एक हाथ में बच्चे को पक़ड़े हुए थी और दूसरे हाथ से उसकी रक्षा कर रही थी। एकाएक बलिष्ट ठाकुर ने उसे इतनी जोर से धक्का दिया कि बालक उसके हाथों से छूट कर जमीन पर गिर पड़ा, मगर वह न रोया न बोला, न साँस ली, सुखिया भी गिर पड़ी थी। सँभल कर बच्चे को उठाने लगी, तो उसके मुँख पर नजर पड़ी। ऐसा जान पड़ा मानों पानी में परछाई हो। उसके मुँह से एक चीख निकल पड़ी। बच्चे का माथा छूकर देखा। सारी देह ठंडी हो गयी थी।

एक लम्बी साँस खींचकर वह उठ खड़ी हुई। उसकी आँखों में आँसू न आये। उसका मुँख क्रोध की ज्वाला में तमतमा उठा, आँखों के अंगारे बरसने लगे। दोनों मुट्ठियाँ बँध गयी। दाँत पीसकर बोली–पापियों, मेरे बच्चे के प्राण लेकर क्यों दूर खडे़ हो? मुझे भी क्यों नहीं उसी के साथ मार डालते? मेरे छू लेने से ठाकुर जी को छूत लग गयी? पारस को छूकर लोहा सोना हो जाता है, पारस लोहा नहीं हो सकता। मेरे छूने से ठाकुर जी अपवित्र हो जाएँगे।

मुझे बनाया, तो छूत नहीं लगी? लो अब कभी ठाकुर जी को छूने नहीं आऊँगी। ताले में बन्द रखो पहरे बैठा दो। हाय, तुम्हें दया छू भी नहीं गयी। तुम इतने कठोर हो! बाल-बच्चे वाले होकर भी तुम्हें एक अभागिन माता पर दया न आयी! तिस पर धरम के ठेकेदार बनते हो! तुम सब के सब हत्यारे हो। डरो मत मैं थाना-पुलिस नहीं जाऊँगी। मेरा न्याय भगवान् करेंगे, अब उन्हीं के दरबार में फरियाद करूँगी।

किसी ने चू न की, कोई मिनमिनाया तक नहीं। पाषाण मूर्तियों की भाँति सब सिर झुकाए खड़े रहे।

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