कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह ) प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )प्रेमचन्द
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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ
कजाकी–भैया, खाने को दोगे तो क्यों न आऊँगा?
मैंने कहा–मैं रोज खाने को दूँगा।
कजाकी बोला–तो मैं भी रोज आऊँगा।
मैं नीचे उतरा, और दौड़कर अपनी सारी पूँजी उठा लाया। कजाकी को रोज बुलाने के लिए उस समय मेरे पास कोहिनूर हीरा भी होता, तो उसको भेंट करने में मुझे पसोपेश न होता।
कजाकी ने विस्मत होकर पूछा–ये पैसे कहाँ से लाए भैया?
मैंने गर्व से कहा–मेरे ही तो हैं।
कजाकी–तुम्हारी अम्माँ जी तुमको मारेंगी; कहेंगी, कजाकी ने फुसलाकर मँगवा लिए होंगे। भैया, इन पैसों की मिठाई ले लेना, और आटा मटके में रख देना। मैं भूखों नहीं मरता। मेरे दो हाथ हैं। मैं भला भूखों मर सकता हूँ!
मैंने बहुत कहा कि पैसे मेरे हैं पर कजाकी ने न लिए। उसने बड़ी देर तक इधर-उधर की सैर करायी, गीत सुनाए और मुझे घर पहुँचाकर चला गया। मेरे द्वार पर आटे की टोकरी भी रख दी।
मैंने घर में कदम रखा ही था कि अम्माँजी ने डाँटकर कहाँ क्यों रे चोर तू आटा कहाँ ले गया था? अब चोरी करना सीखता है बता, किसको आटा दे आया, नहीं तो तेरी खाल उधेड़कर रख दूँगी।
मेरी नानी मर गई। अम्माँ क्रोध में सिंहनी हो जाती थीं। सिटपिटिया कर बोला किसी को तो नहीं दिया।
अम्माँ–तूने आटा नहीं निकाला? देख, कितना आटा सारे आंगन में बिखरा पड़ा है?
मैं चुप खड़ा था। वह कितना ही धमकाती थीं, चुमकारती थीं, पर मेरी जबान न खुलती थी। आनेवाली विपत्ति के भय से प्राण सूख रहे थे। यहाँ तक कहने की हिम्मत न पड़ती थी कि बिगड़ती क्यों हो, आटा तो द्वार पर ही रखा हुआ है। न उठाकर लाते ही बनता था, मानो क्रिया शक्ति ही लुप्त हो गई हो–मानो पैरों में हिलने का सामर्थ्य ही नहीं।
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