कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह ) प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )प्रेमचन्द
|
317 पाठक हैं |
नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ
सहसा कजाकी ने पुकारा–बहूजी, आटा यह द्वार पर रखा हुआ है। भैया मुझे देने को ले गये थे।
यह सुनते ही अम्माँ द्वार की ओर चली गई। कजाकी से वह परदा न करती थीं। उन्होंने कजाकी से कोई बात की या नहीं, यह तो मैं नहीं जानता; लेकिन अम्माँजी खाली टोकरी लिये हुए घर में आयीं। फिर कोठरी में जाकर संदूक से कुछ निकाला और द्वार की ओर गयीं। मैंने देखा, उनकी मुट्ठी बन्द थी। अब मुझे वहाँ खड़े न रहा गया। अम्माँ के पीछे-पीछे मैं भी गया। अम्माँ ने कई बार पुकारा, मगर कजाकी चला गया था।
मैंने बड़ी वीरता से कहा–मैं जाकर खोज लाऊँ अम्माजी!
अम्माजी ने किवाड़ बन्द करते हुए कहा–तुम अँधेरे में कहाँ जाओगे, अभी तो खड़ा था। मैंने कहा, यही रहना; मैं आती हूँ। तब तक न जाने कहाँ खिसक गया। बड़ा संकोची है। आटा तो लेता ही न था। मैंने जबरदस्ती उसके अँगोछे में बाँध दिया। मुझे तो बेचारे पर बड़ी दया आती है। न जाने बेचारे के घर में कुछ खाने को है या नहीं। रुपये लायी थी कि दे दूँगी; पर न जाने कहाँ चला गया। अब तो मुझे भी साहस हुआ। मैंने अपनी चोरी की पूरी कथा कह डाली। बच्चों के साथ समझदार बच्चे बनकर माँ-बाप उन पर जितना असर डाल सकते हैं, जितनी शिक्षा दे सकते हैं, उतना बूढ़े बनकर नहीं।
अम्माँजी ने कहा–तुमने मुझसे पूछ क्यों न लिया? क्या मैं कजाकी को थोड़ा-सा आटा न दे देती?
मैंने इसका कोई उत्तर न दिया। दिल में कहा, इस वक्त तुम्हें कजाकी पर दया आ रही है, जो चाहो दे डालों; लेकिन मैं माँगता तो मारने दौड़ती। हाँ, यह सोचकर चित्त प्रसन्न हुआ कि अब कजाकी भूखों न मरेगा। अम्माँ जी उसे रोज खाने को देंगी, और वह मुझे रोज कंधे पर बिठाकर सैर कराएगा।
दूसरे दिन मैं दिन-भर मुन्नू के साथ खेलता रहा। शाम को सड़क पर जा कर खड़ा हो गया। मगर अँधेरा हो गया था कजाकी का कहीं पता नहीं, दिये जल गए, रास्ते में सन्नाटा छा गया; पर काजाकी न आया।
|