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कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :225
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8584

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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ


मैं रोता हुआ घर आया। अम्माँ जी ने पूछा–क्यों रोते हो बेटा? क्या कजाकी नहीं आया?

मैं और जोर से रोने लगा। अम्माँ जी ने मुझे छाती से लगा लिया। मुझे ऐसा मालूम हुआ कि उनका कंठ भी गद्गद हो गया है।

उन्होंने कहा–बेटा चुप हो जाओ। मैं कल किसी हरकारे को भेजकर कजाकी को बुलवाऊँगी।

मैं रोते-ही-रोते सो गया। सबेरे ज्यों ही आँख खुली, मैंने अम्माँजी से कहा–कजाकी को बुलवा दो।

अम्माँ ने कहा–आदमी गया है बेटा; कजाकी आता होगा। मैं खुश हो गया खेलने लगा। मुझे मालूम था अम्मा जी जो बात कहती हैं उसे पूरा जरूर करती हैं। उन्होंने सबेरे ही हरकारे को भेज दिया था। दस बजे मैं मुन्नू को लिए घर आया, तो मालूम हुआ कि कजाकी अपने घर पर नहीं मिला। वह रात को भी घर न गया था। उसकी स्त्री रो रही थी कि-न-जाने कहाँ चले गए। उसे भय था कि वह कहीं भाग गया है।

बालकों का हृदय कितना कोमल होता है, इसका अनुमान दूसरा कर नहीं सकता। उनमें अपने भावों को व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं होते। उन्हें यह भी ज्ञात नहीं होता कि कौन-सी बात उन्हें विकल कर रही है, कौन-सा काँटा उनके हृदय में खटक रहा है, क्यों बार-बार उन्हें रोना आता है, क्यों वे मन मारे बैठे रहते हैं, खेलने में जी नहीं लगता। मेरी भी वही दशा थी। कभी घर में आता, कभी बाहर जाता, कभी सड़क पर जा पहुँचता। आँखें कजाकी को ढूँढ़ रही थीं। वह कहाँ चला गया? कहीं भाग तो नहीं गया?

तीसरे पहर मैं खोया हुआ-सा सड़क पर खड़ा था। सहसा मैंने कजाकी को एक गली में देखा। हाँ, वह कजाकी ही था। मैं उसकी ओर चिल्लाता हुआ दौड़ा। पर गली में उसका पता न था, न जाने किधर गायब हो गया। मैंने गली के इस सिरे तक देखा; मगर कजाकी की गन्ध तक न मिली।

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