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कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :225
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8584

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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ


झींगुर–क्या, बगला मारे पखना हाथ।

हरिहर–फिर तुम्हीं सोचो।

झींगुर–ऐसी जगत निकालो कि फिर पनपने न पावे!

इसके बाद फुस-फुस करके बातें होने लगीं। यह एक रहस्य है कि भलाइयों में जितना द्वेष होता है, बुराईयों में उतना ही प्रेम। विद्वान् विद्वान् को देखकर, साधु साधु को देखकर, और कवि कवि को देखकर जलता है। एक दूसरे की सूरत नहीं देखना चाहता। पर जुआरी जुआरी को देखकर, शराबी शराबी को देखकर, चोर चोर को देखकर सहानुभुति दिखाता है, सहायता करता है। एक पंडितजी अगर अँधेरे में ठोकर खाकर गिर पड़ें, तो दूसरे पंडितजी उन्हें उठाने के बदले दो ठोकरें और लगाएँगे कि वह फिर उठ ही न सकें। पर एक चोर पर आफत आयी देखकर दूसरा चोर उसकी आड़ कर लेता है बुराई से सब घृणा करते हैं। इसलिए बुरों में परस्पर प्रेम होता है। भलाई की सारा संसार प्रशंसा करता है, इसलिए भलो में विरोध होता है। चोर को मार कर चोर क्या पाएगा? घृणा। विद्वान् का अपमान करके विद्वान क्या पाएगा? यश।

झींगुर और हरिहर ने सलाह कर ली। षड्यंत्र रचने की विधि सोची गई। उसका स्वरूप, समय और क्रम ठीक किया गया। झींगुर चला तो अकड़ा जाता था। मार लिया दुश्मन को, अब कहाँ जाता है।

दूसरे दिन झींगुर काम पर जाने लगा, तो पहले बुद्धू के घर पहुँचा। बुद्धू ने पूछा–क्यों, आज नहीं गये क्या?

झींगुर–जा तो रहा हूँ। तुम से यही कहने आया था कि मेरी बछिया को अपनी भेड़ों के साथ क्यों नहीं चरा दिया करते। बेचारी खूँटे से बँधी मरी जाती है। न घास, न चारा, क्या खिलावें?

बूद्धू–भैया, गाय भैंस नहीं रखता। चमारों को जानते हो, एक ही हत्यारे होते हैं। उसी हरिहर ने मेरी गउएँ मार डालीं। न जाने क्या खिला देता है। तब से कान पकड़े कि अब गाय-भैस न पालूँगा। लेकिन तुम्हारी एक ही बछिया है, उसको कोई क्या करेगा? जब चाहो, पहुँचा दो।

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