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कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :225
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8584

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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ


यह कहकर बुद्धू गृहोत्सव का सामान उसे दिखाने लगा। घी, शक्कर, मैदा, तरकारी सब मँगा रखा था। केवल सत्यनारायण की कथा की देर थी। झींगुर की आँखें खुल गईं। ऐसी तैयारी न उसने स्वयं कभी की थी, और न किसी को करते देखी थी। मजदूरी करके घर लौटा, तो सबसे पहला काम जो उसने किया, वह अपनी बछिया को बूद्धू के घर पहुँचाना था। उसी रात को बुद्धू के यहाँ सत्यनारायण की कथा हुई। ब्रहाभोज भी किया गया। सारी रात विप्रों का आगत-स्वागत करते गुजरी। भेड़ों के झुंड में जाने का अवकाश ही न मिला। प्रातःकाल भोजन करके उठा ही था (क्योंकि रात का भोजन सबेरे मिला) कि एक आदमी ने आकर खबर दी–बूद्धू, तुम यहाँ बैठे हो, उधर भेड़ो में बछिया मरी पड़ी है। भले आदमी, उसकी पगहिया भी नहीं खोली थी!

बुद्धू ने सुना, और मानो ठोकर लग गई। झींगुर भी भोजन करके वही बैठा था। बोला–हाय! मेरी बछिया –चलो, जरा देखू तो। मैंने पगहिया नहीं लगायी थी। उसे भेड़ों में पहुँचाकर अपने घर चला गया। तुमने यह पगिहया कब लगा दी?

बूद्धू–भगवान् जाने, जो मैंने उसकी पगहिया देखी भी हो। मैं तो तब से भेड़ों में गया ही नहीं।

झींगुर–जाते न, तो पगहिया कौन लगा देता? गये होगे, याद न आती होगी।

एक ब्राहाण–मरी तो भेड़ों में ही न? दुनिया तो यही कहेगी कि बुद्धू की असावधानी से उसकी मृत्यु हुई, पगहिया किसी की हो।

हरिहर–मैंने कल साँझ को इन्हें भेड़ों में बछिया को बाँधते देखा था।

बुद्धू–मुझे!

हरिहर–तुम नहीं लाठी कंधे पर रक्खे बछिया बाँध रहे थे?

बुद्धू–बड़ा सच्चा है तू! तूने मुझे बछिया को बाँधते देखा था?

हरिहर–तो मुझ पर काहे को बिगड़ते हो भाई? तुमने नहीं बाँधी, नहीं सही।

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