कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह ) प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )प्रेमचन्द
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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ
बुद्धू–नहीं तो खाऊँगा क्या?
झींगुर–मैं तो जून चबेना कर लेता हूँ। इस जून सत्तू पर काट देता हूँ। कौन झंझट करे।
बुद्धू–इधर–उधर लकड़ियाँ पड़ी हुई है, बटोर लाओ। आटा मैं घर से लाता आया हूँ। घर पर ही पिसवा लिया था। यहाँ तो बड़ा महँगा मिलता है। इसी पत्थर की चटान पर आटा गूँधे लेता हूँ। तुम तो मेरा बनाया खाओगे नहीं, इसलिए तुम्हीं रोटियाँ सेंको, मैं बना दूँगा।
झींगुर–तवा भी तो नहीं है।
बुद्धू–तवे बहुत हैं। यही गारे का तसला माँजे लेता हूँ।
आग जली, आटा गूँधा गया। झींगुर ने कच्ची-पक्की रोटियाँ बनायीं।
बुद्धू पानी लाया। दोनों ने लाल मिर्च और नमक से रोटियाँ खायीं। फिर चिलम भरी गई। दोनों आदमी पत्थर की सिलों पर लेटे, और चिलम पीने लगे।
बुद्धू ने कहा–तुम्हारी ऊख में आग मैंने ही लगाई थी।
झींगुर ने विनोद के भाव से कहा–जानता हूँ।
थोड़ी देर बाद झींगुर बोला–बछिया मैंने ही बाँधी थी, और हरिहर ने उसे कुछ खिला दिया था।
बुद्धू ने भी वैसे ही भाव से कहा–जानता हूँ।
फिर दोनों सो गए।
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