कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह ) प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )प्रेमचन्द
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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ
दो महीने के बाद वह घर लौटा। बाल बढ़े हुए थे। दुर्बल इतना, मानो ६॰ वर्ष का बूढ़ा हो। तीर्थयात्रा के लिए रुपयों का प्रबंध करना था। गड़रियों को कौन महाराज कर्ज दे? भेड़ों का भरोसा क्या? कभी-कभी रोग फैलता है, तो रात भर में दल का दल साफ हो जाता है। उस पर जेठ का महीना, जब भेड़ों से कोई आमदनी होने की आशा नहीं। एक तेली राजी भी हुआ, तो दो आने रुपया ब्याज पर। आठ महीने में ब्याज मूल के बराबर हो जाएगा। यहाँ कर्ज लेने की हिम्मत न पड़ी। इधर दो महीने में कितनी ही भेड़ें चोरी चली गई थीं। लड़के चराने ले जाते थे। दूसरे गाँववाले चुपके से एक-दो भेड़ें किसी खेत या घर में छिपा देते, और पीछे मारकर खा जाते। लड़के बेचारे एक तो पकड़ न सकते, और जो देख भी लेते, तो लड़े क्योंकर। सारा गाँव एक हो जाता था। एक महीने में तो भेड़ें आधी भी न रहेंगी। बड़ी विकट समस्या थी। विवश होकर बुद्धू ने एक बूचड़ को बुलाया, और सब भेड़ें उसके हाथ बेच डाली। ५॰॰ रु. हाथ लगे। उनमें से २॰॰ रु. लेकर वह तीर्थयात्रा करने गया। शेष रुपये ब्रहाभोज आदि के लिए छोड़ गया।
बुद्धू के जाने पर उसके घर में दो बार सेंध लगी। पर यह कुशल हुई कि जगहट हो जाने के कारण रुपये बच गए।
सावन का महीना था। चारों ओर हरियाली छायी हुई थी। झींगुर के बैल न थे खेत बटाई पर दे दिए थे। बुद्धू प्रायश्चित से निवृत्त हो गया था, और उसके साथ ही माया के फंदे से भी। न झींगुर के पास कुछ था, न बुद्धू के पास। कौन किससे जलता, और किसलिए जलता?
सन की कल बंद हो जाने के कारण झींगुर अब बेलदारी का काम करता था। शहर में एक विशाल धर्मशाला बन रही थी। हजारों मजदूर काम करते थे। झींगुर भी उन्हीं में था। सातवें दिन मजदूरी के पैसे लेकर आता था, और रात-भर रहकर सबेरे फिर चला जाता था।
बुद्धू भी मजदूरी की टोह में यही पहुँचा। जमादार ने देखा, दुर्बल आदमी है, कठिन काम तो इससे हो न सकेगा, कारीगरों को गारा देने के लिए रख लिया। बुद्धू सिर पर रखे गारा लेने गया, तो झींगुर को देखा। ‘राम-राम’ हुई, ने झींगुर ने गारा भर दिया, बुद्धू उठा लाया। दिन-भर दोनों चुपचाप अपना-अपना काम करते रहे।
संध्या-समय झींगुर ने पूछा–कुछ बनाओगे न?
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