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कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :225
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8584

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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ


मैनेजर पर कुँवर साहब की देख-रेख का भार भी था। विलास-प्रिय कुँवर को मैंनेजर का हस्तक्षेप बहुत ही बुरा मालूम होता था। दोनों में बरसों से मन मुटाव था। यहाँ तक की कई बार प्रत्यक्ष कटु वाक्यों की नौबत भी आ पहुँची थी। अतएव कुँवर साहब पर संदेह होना स्वाभाविक ही था। इस घटना का अनुसंधान करने के लिए जिले के हाकिम ने मिरजा नईम को नियुक्त किया। किसी पुलिस-कर्मचारी द्वारा तहकीकात कराने में कुँवर साहब ने अपमान का भय था।

नईम को अपने भाग्य-निर्माण का स्वर्ण-सुयोग प्राप्त हुआ। वह न त्यागी थे न ज्ञानी। सभी उनके चरित्र की दुर्बलता से परिचित थे, अगर कोई न जानता था, तो हुक्काम लोग। कुँवर साहब ने मुँह मागी मुराद पायी। नईम जब विष्णुपुर पहुँचा तो उसका असामान्य आदर-सत्कार हुआ। भेंटें चढ़ने लगीं, अर्दली के चपरासी, पेशकार, साईस, बावरची, खिदमतगार, सभी के मुँह तर और मुट्ठियाँ गर्म होने लगीं। कुँवर साहब ने हवाली-मवाली रात-दिन भेरे रहते, मानो दामाद ससुराल आया हो।

एक दिन प्रातःकाल कुँवर साहब की माता आकर नईम के सामने हाथ बाँध कर खड़ी हो गई। नईम लेटा हुआ हुक्का पी रहा था। तप, संयम और वैधव्य की यह तेजस्वी प्रतिमा देखकर उठ बैठा

रानी उसकी ओर वात्सल्य-पूर्ण लोचनों से देखती हुई बोली–हुजूर, मेरे बेटे का जीवन आपके हाथ है। आप ही उसके भाग्य-विधाता है, आपको उसी माता की सौगंध है, जिसके आप सुयोग्य पुत्र हैं, मेरे लाल की रक्षा कीजिएगा। मैं तन, मन, धन आपके चरणों पर अर्पण करती हूँ।

स्वार्थ ने दया के संयोग से नईम को पूर्ण रीति से वशीभूत कर लिया।

उन्हीं दिनों कैलास नईम से मिलने आया। दोनों मित्र बड़े तपाक से गले मिले। नईम ने बातों में यह सम्पूर्ण वृत्तांत कह सुनाया, और कैलास पर अपने कृत्य का औचित्य सिद्व करना चाहा।

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