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कहानी संग्रह >> प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :286
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8588

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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है


संयोग-वश एक दिन वह इन्हीं कल्पनाओं के सुख-स्वप्न देखता हुआ सिर झुकाए सड़क छोड़कर गलियों से चला जा रहा था कि सहसा एक सज्जन से उसकी मुठभेड़ हो गई। टामी ने चाहा कि बचकर निकल जाऊँ; पर वह दुष्ट इतना शांतिप्रिय न था। उसने तुरंत झपटकर टामी का टेंटुआ पकड़ लिया। टामी ने बहुत अनुनय-विनय की; गिड़गिड़ाकर कहा–ईश्वर के लिए मुझे यहाँ से चले जाने दो; कसम ले लो, जो इधर पैर रखूँ। मेरी शामत आई थी कि तुम्हारे अधिकार क्षेत्र में चला आया। पर उस मदांध और निर्दय प्राणी ने जरा भी रियायत न की। अंत में हारकर टामी ने गर्दभ-स्वर में फरियाद करनी शुरू की। यह कोलाहल सुनकर मोहल्ले के दो चार नेता लोग एकत्र हो गए; पर उन्होंने भी दीन पर दया करने के बदले उलटे उसी पर दंत-प्रहार करना शुरू किया! उन अत्याचारी पशुओं ने बहुत दूर तक उसका पीछा किया; यहाँ तक कि मार्ग में नदी पड़ गई। टामी ने उसमें कूदकर अपनी जान बचायी।

कहते हैं, एक दिन सबके दिन फिरते हैं। टामी के दिन भी नदी में कूदते ही फिर गये। कूदा था जान बचाने के लिए, हाथ लग गए मोती। तैरता हुआ उस पार पहुँचा, तो वहाँ उसकी चिरसंचित अभिलाषाएँ मूर्तिमयी हो रही थीं।

एक विस्तृत मैदान था। जहाँ तक निगाह जाती। हरियाली की छटा दिखाई देती। कहीं नालों का मधुर कलकल था, कहीं झरनों का मंद गान; कहीं वृक्षों के सुखद पुंज, कहीं रेत के सपाट मैदान; बड़ा सुरम्य मनोहर दृश्य था।

यहाँ बड़े तेज नखों वाले पशु थे, जिनकी सूरत देखकर टामी का कलेजा दहल उठता। उन्होंने टामी की कुछ परवाह न की। वे आपस में नित्य लड़ा करते; नित्य खून की नदी बहा करती थी। टामी ने देखा, यहाँ इन भंयकर जंतुओं से पेश न पा सकूँगा। उसने कौशल से काम लेना शुरू किया। जब दो लड़नेवाले पशुओं में एक घायल और मुर्दा होकर गिर पड़ता, तो टामी लपक कर मांस का टुकड़ा ले भागता और एकांत में बैठकर खाता। विजयी पशु विजय उन्माद में उसे तुच्छ समझकर कुछ न बोलता।

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