कहानी संग्रह >> प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह ) प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )प्रेमचन्द
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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है
दुराशा
पात्र
दयाशंकरः कार्यालय के एक साधारण लेखक।
आनंदमोहनः कॉलेज के एक विद्यार्थी तथा दयाशंकर का मित्र।
ज्योतिस्वरूपः दयाशंकर का एक सुदूर सम्बन्धी।
सेवतीः दयाशंकर की पत्नी।
(होली का दिन)
(समय–नौ बजे रात्रि। आनंदमोहन तथा दयाशंकर वार्त्तालाप करते जा रहे हैं।)
आनंदमोहन–हम लोगों को देर तो नहीं हुई। अभी तो नौ बजे होंगे।
दयाशंकर–नहीं, अभी क्या देर होगी?
आनंदमोहन–वहाँ बहुत इन्तजार न कराना, क्यों एक तो दिन-भर गली-गली घूमने के पश्चात् मुझमें इंतजार करने की शक्ति ही नहीं, दूसरे ठीक ग्यारह बजे बोर्डिंग हाउस का दरवाजा बन्द हो जाता है।
दयाशंकर–अजी, चलते-चलते थाली सामने आयगी। मैंने तो सेवती से पहले ही कह दिया है कि नौ बजे तक सब सामान तैयार रखना।
आनंदमोहन–तुम्हारा घर तो अभी दूर है। यहाँ मेरे पैरों में चलने की शक्ति ही नहीं। आओ, कुछ बातचीत करते चलें। भला, यह तो बताओ कि परदे के सम्बन्ध में तुम्हारा क्या विचार है? भाभीजी मेरे सामने आएँगी या नहीं। क्या मैं उनके चन्द्र-मुख का दर्शन कर सकूँगा? सच कहो।
दयाशंकर–तुम्हारे और मेरे बीच में तो भाई-चारे का सम्बन्ध है। यदि सेवती मुँह खोले हुए तुम्हारे सम्मुख आ जाए, तो मुझे कोई ग्लानि नहीं। किंतु साधारणतः मैं परदे की प्रथा का सहायक और समर्थक हूँ, क्योंकि हम लोगों की सामाजिक नीति इतनी पवित्र नहीं कि स्त्री अपने लज्जा-भाव को चोट पहुँचाए बिना ही अपने घर से बाहर निकले।
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