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कहानी संग्रह >> प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :286
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8588

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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है


आनंदमोहन–मेरे विचार में तो परदा ही कुचेष्टाओं का मूल कारण है। परदे से स्वभावतः पुरुषों के चित्त में उत्सुकता उत्पन्न होती है, और यह भाव कभी तो बोली-ठोली में प्रकट होता है और कभी नेत्रों के कटाक्षों में।

दयाशंकर–जब तक हम लोग इतने दृढ़-प्रतिज्ञ न हो जाएँ कि सतीत्व-रक्षा के पीछे प्राण भी बलिदान कर दें, तब तक परदे की प्रथा का तोड़ना समाज-मार्ग में विष बोना है।

आनंदमोहन–आपके विचार से तो यही सिद्ध होता है कि योरप में सतीत्व-रक्षा के लिए रात-दिन रुधिर की नदियाँ बहा करती हैं।

दयाशंकर–वहाँ इसी बेपरदगी ने तो सतीत्व धर्म को निर्मूल कर दिया है। कभी मैंने किसी समाचार पत्र में पढ़ा था कि एक स्त्री ने पुरुष पर इस प्रकार का अभियोग चलाया था कि उसने मुझे निर्भीकतापूर्वक कुदृष्टि से घूरा था; किंतु विचारक ने उस स्त्री को नख-शिख से देख यह कहकर मुकदमा खारिज कर दिया कि प्रत्येक मनुष्य को अधिकार है कि हाट-बाट में नौजवान स्त्री को घूरकर देखे। मुझे तो यह अभियोग और यह फैसला सर्वथा हास्यास्पद जान पड़ते हैं, और किसी भी समाज को निंदित करने वाले हैं।

आनंदमोहन–इस विषय को छोड़ो। यह तो बताओ कि इस समय क्या-क्या खिलाओगे? मित्र नहीं, तो मित्र की चर्चा ही हो।

यह तो सेवती की पाक कला-कुशलता पर निर्भर है। पूरियाँ और कचौरियाँ तो होंगी ही। यथासम्भव खूब खरी भी होंगी, यथाशक्ति खस्ते और समोसे भी आएँगे। खीर आदि के बारे में भविष्यवाणी की जा सकती है। आलू-गोभी की शोरबेदार तरकारी और मटर-दालमोट भी मिलेंगे। फिरिनी के लिए भी कह आया था। गूलर के कोफ्ते और आलू के कबाब–ये दोनों सेवती खूब पकाती है। इनके सिवा दही-बड़े और चटनी-अचार की चर्चा तो व्यर्थ ही है। हाँ, शायद किशमिश का रायता भी मिले, जिसमें केशर की सुगंध उड़ती होगी।

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