कहानी संग्रह >> प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह ) प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )प्रेमचन्द
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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है
आनंदमोहन–मित्र, मेरे मुँह में तो पानी भर आया। तुम्हारी बातों ने तो मेरे पैरों में जान डाल दी। शायद पर होते, तो उड़कर पहुँच जाता।
दयाशंकर–लो, अब आये ही जाते हैं। यह तम्बाकू की दूकान है, इसके बाद चौथा मकान अपना ही है।
आनंदमोहन–मेरे साथ बैठकर एक ही थाली में खाना। कहीं ऐसा न हो कि अधिक खाने के लिए मुझे भाभीजी के सामने लज्जित होना पड़े।
दयाशंकर–इससे तुम निश्शंक रहो। उन्हें मिताहारी आदमी से चिढ़ है। वह कहती हैं–‘जो खाएगा ही नहीं, वह दुनिया में काम क्या करेगा।’ आज शायद तुम्हारी बदौलत मुझे भी काम करने वालों की पंक्ति में स्थान मिल जाय। कम-से-कम कोशिश तो ऐसी ही करना।
आनंदमोहन–भाई यथाशक्ति चेष्टा करूँगा। शायद तुम्हें ही प्रधान-पद मिल जाय।
दयाशंकर–यह लो, आ गए। देखना, सीढ़ियों पर अँधेरा है! शायद चिराग जलाना भूल गईं।
आनंदमोहन–कोई हर्ज नहीं। तिमिर-लोक ही में सिकन्दर को अमृत मिला था।
दयाशंकर–अंतर इतना ही है तिमिर-लोक में पैर फिसले, तो पानी में गिरोगे, और यहाँ फिसले तो पथरीली सड़क पर।
(ज्योतिस्वरूप आते हैं)
ज्योतिस्वरूप–सेवक भी उपस्थित हो गया। देर तो नहीं हुई? डबल मार्च करता आया हूँ।
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