कहानी संग्रह >> प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह ) प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )प्रेमचन्द
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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है
दयाशंकर–नहीं, अभी तो देर नहीं हुई। शायद आपकी भोजनाभिलाषा आपको समय से पहले खींच लाई।
आनंदमोहन–आपका परिचय कराइए। मुझे आपसे देखा-देखी नहीं है।
दयाशंकर–(अँगरेजी में) मेरे सुदूर के सम्बन्ध में साले होते हैं। एक वकील के मुहर्रिर हैं। जबरदस्ती नाता जोड़ रहे हैं। सेवती ने निमंत्रण दिया होगा। मुझे कुछ भी ज्ञात नहीं। यह अंग्रेजी नहीं जानते।
आनंदमोहन–इतना तो अच्छा है। अँगरेजी में ही बात करेंगे।
दयाशंकर–सारा मजा किरकिरा हो गया। कुमानुषों के साथ बैठकर खाना, फोड़े का आपरेशन कराने के बराबर है।
आनंदमोहन–किसी उपाय से इन्हें विदा कर देना चाहिए।
दयाशंकर–मुझे तो चिंता है कि अब संसार के कार्यकर्ताओं में हमारी और तुम्हारी गणना ही न होगी। पाला इसी के हाथ रहेगा।
आनंदमोहन–खैर, ऊपर चलो। आनंद तो तब आवे, जब इन महाशय को आधे पेट ही उठना पड़े।
(तीनों आदमी ऊपर जाते हैं।)
दयाशंकर–अरे! कमरे में भी रोशनी नहीं, अंधेरा घुप है। लाला ज्योतिस्वरूप, देखिएगा, कहीं ठोकर खाकर गिर न पड़िएगा।
आनंद मोहन–अरे गजब…
(आलमारी से टकराकर धम-से गिर पड़ता हैं।)
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