कहानी संग्रह >> प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह ) प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )प्रेमचन्द
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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है
दयाशंकर–लाला ज्योतिस्वरूप, क्या आप गिर पड़े! चोट तो नहीं आयी!
आनंदमोहन–अजी, मैं गिर पड़ा। कमर टूट गई। तुमने अच्छी दावत की?
दयाशंकर–भले आदमी, सैकड़ों बार तो आये हो। मालूम नहीं था सामने आलमारी रखी हुई है? क्या ज्यादा चोट लगी?
आनंदमोहन–भीतर जाओ। थालियाँ लाओ और भाभीजी से कह देना कि थोड़ा सा तेल गर्म कर लें। मालिश कर लूँगा।
ज्योतिस्वरूप–महाशय, यह आपने क्या रख छोड़ा है? जमीन पर गिर पड़ा।
दयाशंकर–उगालदान तो नहीं लुढ़का दिया? हाँ वही तो है? सारा फर्श खराब हो गया।
आनंदमोहन–बंधुवर, जाकर लालटेन जला लाओ। कहाँ लाकर कालकोठरी में डाल दिया।
दयाशंकर–(घर में जाकर) अरे यहाँ भी तो अँधेरा है! चिराग तक नहीं। सेवती कहाँ हो?
सेवती–बैठी तो हूँ।
दयाशंकर–यह बात क्या है? चिराग क्यों नहीं जले? तबीयत तो अच्छी है?
सेवती–बहुत अच्छी है। वारे तुम आ तो गए। मैंने समझा था कि आज आपका दर्शन ही न होगा।
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