कहानी संग्रह >> प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह ) प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )प्रेमचन्द
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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है
दयाशंकर–ज्वर है क्या? कब से आया है?
सेवती–नहीं, ज्वर-स्वर कुछ नहीं। चैन से बैठी हूँ।
दयाशंकर–तुम्हारा पुराना वायुगोला तो नहीं उभर आया?
सेवती–(व्यंग्य से) हाँ वायुगोला ही है। लाओ, कोई दवा है?
दयाशंकर–अभी डाक्टर के यहाँ से मँगवाता हूँ।
सेवती–कुछ मुफ्त की रकम हाथ आ गई है क्या? लाओ, मुझे दे दो, अच्छी हो जाऊँ।
दयाशंकर–तुम तो हँसी कर रही हो। साफ-साफ कोई बात नहीं कहतीं। क्या मेरे देर से आने का यही दंड है? मैंने नौ बजे आने का वचन दिया था। शायद दो-चार मिनट अधिक हुए हों। सब चीजें तैयार हैं न?
सेवती–हाँ, बहुत ही खस्ता। आधोआध मक्खन डाला है
दयाशंकर–आनंदमोहन से मैंने तुम्हारी खूब प्रशंसा की है।
सेवती–ईश्वर ने चाहा, तो वह भी प्रशंसा ही करेंगे। पानी रख आओ, हाथ-वाथ तो धोंवे।
दयाशंकर–चटनियाँ भी बनवा ली हैं न? आनंदमोहन को चटनियों से बहुत प्रेम है।
सेवती–खूब चटनी खिलाओ। सेरों बना रखी है।
दयाशंकर–पानी में केवड़ा डाल दिया है?
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