कहानी संग्रह >> प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह ) प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )प्रेमचन्द
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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है
सेवती–हाँ, ले जाकर पानी रख आओ। पीना आरम्भ करें प्यास लगी होगी।
आनंदमोहन–(बाहर से) मित्र, शीघ्र आओ। अब इंतजार करने की शक्ति नहीं है।
दयाशंकर–जल्दी मचा रहा है। लाओ, थालियाँ परसो।
सेवती–पहले चटनी और पानी रख आओ।
दयाशंकर–(रसोई में जाकर) अरे! यहाँ तो चूल्हा बिल्कुल ठंडा पड़ गया है! महरी आज सबेरे काम कर गई क्या?
सेवती–हाँ खाना पकने से पहले ही आ गई थी।
दयाशंकर–बरतन सब मँजे हुए रखे हैं। क्या कुछ पकाया ही नहीं?
सेवती–भूत-प्रेत आकर खा गए होंगे।
दयाशंकर–क्या चूल्हा ही नहीं जलाया? गजब कर दिया!
सेवती–गजब मैंने कर दिया या तुमने?
दयाशंकर–मैंने तो सब सामान लाकर रख दिया। तुमसे बार-बार पूछ लिया था कि किसी चीज की कमी हो, तो बतलाओ; फिर खाना क्यों न पका? क्या विचित्र रहस्य है? भला मैं इन दोनों को क्या मुँह दिखाँऊगा?
आनंदमोहन–मित्र, क्या तुम अकेले ही सारी सामग्री चट कर रहे हो? इधर भी लोग आशा लगाए बैठे हैं–इंतजार दम तोड़ रहा है।
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