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प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :286
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8588

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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है


सेवती–है क्यों नहीं। चटनी बना ही डाली है और पानी भी पहले से ही तैयार है।

दयाशंकर–यह दिल्लगी तो हो चुकी। सचमुच बताओ कि खाना क्यों नहीं पकाया? क्या तबीयत खराब हो गई थी, अथवा किसी कुत्ते ने आकर रसोई अपवित्र कर दी?

आनंदमोहन–बाहर क्यों नहीं आते हो भाई, भीतर-ही-भीतर क्या मिसकौट कर रहे हो? अगर सब चीजें नहीं तैयार हैं तो न सही। जो कुछ तैयार हो, वही लाओ। इस समय तो सादी पूरियाँ भी खस्ते से अधिक स्वादिष्ट जान पड़ेंगी। कुछ लाओ तो भला, श्रीगणेश तो हो। मुझसे अधिक उत्सुक मेरे मित्र मुंशी ज्योतिस्वरूप हैं।

सेवती–भैया ने दावत के इन्तजार में आज दोपहर को भी खाना न खाया होगा।

दयाशंकर–बात क्यों टालती हो, मेरी बातों का जवाब क्यों नहीं देतीं?

सेवती–नहीं जवाब देती, क्या कुछ आपका कर्ज खाया है या रसोई बनाने के लिए लौंडी हूँ?

दयाशंकर–यदि मैं घर का काम करके अपने को दास नहीं समझता, तो तुम घर का काम करके अपने को दासी क्यों, समझती हो?

सेवती–मैं नहीं समझती, तुम समझते हो।

दयाशंकर–क्रोध मुझे आना चाहिए; उलटे तुम बिगड़ रही हो।

सेवती–तुम्हें क्यों मुझ पर क्रोध आना चाहिए। इसलिए कि तुम पुरुष हो?

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