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कहानी संग्रह >> प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :286
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8588

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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है


दयाशंकर–नहीं, इसलिए कि तुमने आज मुझे मेरे मित्रों तथा सम्बन्धियों के सम्मुख नीचा दिखाया।

सेवती–नीचा दिखाया तुमने मुझे या मैंने तुम्हें? तुम तो किसी प्रकार क्षमा करा लोगे, किंतु कालिमा तो मेरे मुख लगेगी।

आनंदमोहन–भई, अपराध क्षमा हो, मैं भी वहीं आता हूँ। यहाँ तो किसी पदार्थ की सुगन्ध तक नहीं आती।

दयाशंकर–क्षमा क्या करा लूँगा, लाचार होकर बहाना करना पड़ेगा।

सेवती–चटनी खिलाकर पानी पिलाओ इतना सत्कार बहुत है। होली का दिन है, यह भी एक प्रहसन रहेगा।

दयाशंकर–प्रहसन क्या रहेगा, कहीं मुख दिखाने योग्य न रहूँगा। आखिर तुम्हें यह क्या शरारत सूझी?

सेवती–फिर वही बात? शरारत क्यों सूझती? क्या तुमसे और तुम्हारे मित्रों से कोई बदला लेना था? लेकिन जब लाचार हो गई, तब क्या करती? तुम तो दस मिनट पछताकर, और मुझ पर अपना क्रोध मिटाकर आनन्द से सोओगे। यहाँ तो मैं तीन बजे से बैठी खीज रही हूँ। यह सब तुम्हारी करतूत है।

दयाशंकर यही तो पूछता हूँ कि मैंने क्या किया?

सेवती–तुमने मुझे पिंजरे में बन्द कर दिया, पर काट दिए! मेरे सामने दाना रख दो, तो खाऊँ; घुघिया में पानी डाल दो तो पिऊँ; यह किसका कसूर है ?

दयाशंकर–भाई, छिपी-छिपी बातें न करो। साफ-साफ क्यों नहीं कहतीं?

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