कहानी संग्रह >> प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह ) प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )प्रेमचन्द
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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है
विवाह के दिन आये। घर में तैयारियाँ होने लगीं। सत्यप्रकाश खुशी से फूला न समाता! मेरी नई अम्माँ आएँगी। बारात में वह भी गया। नए-नए कपड़े मिले। वह पालकी पर बैठा। नानी ने अन्दर बुलाया, और उसे गोद में लेकर एक अशरफी दी। वहीं उसे नई माता के दर्शन हुए। नानी के दर्शन हुए। नानी ने नई माता से कहा–बेटी, कैसा सुन्दर बालक है! इसे प्यार करना।
सत्यप्रकाश ने नई माता को देखा, वह मुग्ध हो गया। बच्चे भी रूप के उपासक होते हैं। एक लावण्मयी मूर्ति आभूषणों से लदी सामने खड़ी थी। उसने दोनों हाथों से उसका आंचल पकड़कर कहा–अम्माँ!
कितना अरुचिकर शब्द था, कितना लज्जायुक्त, कितना अप्रिय! वह ललना, जो ‘देवप्रिया’ नाम से सम्बोधित होती थी, उत्तरदायित्व, त्याग और क्षमा का सम्बोधन न सह सकी। अभी वह प्रेम-विलास का सुख-स्वप्न देख रही थी–यौवन-काल की मदमय वायु-तरंगों में आन्दोलित हो रही थी। इस शब्द ने उसके स्वप्न को भंग कर दिया। कुछ रुष्ट होकर बोली–मुझे अम्माँ मत कहो।
सत्यप्रकाश ने विस्मृत नेत्रों से देखा उसका बाल-स्वप्न भंग हो गया। आँखें डबडबा गईं।
नानी ने कहा–बेटी, देखो लड़के का दिल छोटा हो गया। वह क्या जाने, क्या कहना चाहिए। अम्माँ कह दिया, तो तुम्हें कौन-सी चोट आ गई।
देवप्रिया ने कहा–मुझे अम्माँ न कहे।
सौत का पुत्र विमाता की आँखों में क्यों इतना खटकता है, इसका निर्णय आज तक किसी मनोभाव के पंडित ने नहीं किया। हम किस गिनती में हैं? देवप्रिया जब तक गर्भिणी न हुई, वह सत्यपप्रकाश से कभी-कभी बातें करती, कहनियाँ सुनाती; किंतु गर्भिणी होते ही उसका व्यवहार कठोर हो गया। प्रसव-काल ज्यों-ज्यो निकट आता था, उसकी कठोरता बढ़ती ही जाती थी। जिस दिन उसकी गोद में एक चाँद-से बच्चे का आगमन हुआ, सत्यप्रकाश खूब उछला-कूदा और सौर-गृह में दौड़ा हुआ बच्चे को देखने गया। बच्चा देवप्रिया की गोद में सो रहा था। सत्यप्रकाश ने बड़ी उत्सुकता से बच्चे को विमाता की गोद से उठाना चाहा कि सहसा देवप्रिया ने सरोष स्वर में कहा–खबरदार, इसे मत छूना नहीं तो कान पकड़कर उखाड़ लूँगी।
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