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कहानी संग्रह >> प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :286
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8588

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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है


बालक उलटे पाँव लौट आया और कोठे की छत पर जाकर खूब रोया। कितना सुंदर बच्चा है! मैं उसे गोद में लेकर बैठता, तो कैसा मजा आता! मैं उसे गिराता थोड़े ही, फिर इन्होंने मुझे झिड़क क्यों दिया! भोला बालक क्या जानता था कि इस झिड़की का कारण माता की सावधानी नहीं, कुछ और है।

शिशु का नाम ज्ञानप्रकाश रखा गया था। एक दिन वह सो रहा था। देवप्रिया स्नानागार में थी। सत्यप्रकाश चुपके से आया और बच्चे का ओढ़ना हटा कर उसे अनुरागमय नेत्रों से देखने लगा। उसका जी चाहा कि उसे गोद में लेकर प्यार करूँ; पर डर के मारे उसने उसे उठाया नहीं, केवल कपोलों को चूमने लगा। इतने में देवप्रिया निकल आई। सत्यप्रकाश को बच्चे को चूमते देख कर आग हो गई। दूर ही से डाँटा–हट जा वहाँ से।

सत्यप्रकाश दीन नेत्रों से माता को देखता हुआ बाहर निकल आया संध्या-समय उसके पिता ने पूछा–तुम लल्ला को क्यों रुलाया करते हो?

सत्यप्रकाश–मैं तो उसे कभी नहीं रुलाता। अम्माँ खेलाने नहीं देतीं।

देवप्रकाश–झूठ बोलते हो, आज तुमने बच्चे को चुटकी काटी।

सत्यप्रकाश–जी नहीं, मैं तो उसकी पुच्चियाँ ले रहा था।

देवप्रकाश–झूठ बोलता है!

सत्यप्रकाश–मैं झूठ नहीं बोलता। देवप्रकाश को क्रोध आ गया। लड़के को दो-तीन तमाचे लगाए। पहली बार यह ताड़ना मिली और निरपराध! इसने उसके जीवन की काया-पलट कर दी।

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