सदाबहार >> प्रेमाश्रम (उपन्यास) प्रेमाश्रम (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘प्रेमाश्रम’ भारत के तेज और गहरे होते हुए राष्ट्रीय संघर्षों की पृष्ठभूमि में लिखा गया उपन्यास है
यह कहकर कादिर खाँ ने ढोल का स्वर मिलाया और यह भजन गाने लगा–
जंगल जाऊँ न बिरछा छेड़ूँ न कोई डार सताऊँ।
पात-पात में है अविनासी, वाही में दरस कराऊँ।
मैं अपने राम को रिझाऊँ।
ओखद खाऊँ न बूटी लाऊँ, ना कोई बैद बुलाऊँ।
पूरन बैद मिले अविनासी, ताहि को नबज दिखाऊँ।
मैं अपने राम को रिझाऊँ
कादिर के गले में यद्यपि लोच और माधुर्य न था, पर ताल और स्वर ठीक था। कादिर इस विद्या में चतुर था। प्रेमशंकर भजन सुनकर बहुत प्रसन्न हुए। इसका एक-एक शब्द भक्ति और उद्गार में डूबा हुआ था। व्यवसायी गायकों की नीरसता और शुष्कता की जगह अनुरागमय, भाव-रस परिपूर्ण था।
गाना समाप्त हुआ तो एक नकल की ठहरी। कल्लू इस कला में निपुण था। कादिर मियाँ राजा बने, कल्लू मंत्री बिसेसर साह सेठ बन गये। डपटसिंह ने एक चादर ओढ़ ली और रानी बन बैठे। राजकुमार की कमी थी। लोग सोचने लगे कि यह भाग किसे दिया जाय। प्रेमशंकर ने हँसकर कहा कोई हरज न हो तो मुझे राजकुमार बना दो। यह सुनकर सब-के-सब फूल उठे। नकल शुरू हो गयी।
पहला अंक
राजा– हाय! हाय! बैद्यों ने जबाव दिया, हकीमों ने जवाब दिया, डाकदरों ने जवाब दिया, किसी ने रोग को न पहचाना। सब-के-सब लुटेरे थे। अब जिन्दगानी की कोई आशा नहीं। यह सारा राज-पाट छूटता है। मेरे पीछे परजा पर न क्या बीतेगा! राजकुमार अल्हड़ नादान है, उसकी संगत अच्छी नहीं है। (प्रेमशंकर की ओर कटाक्ष से देखकर) किसानों से मेल रखता है। उसके पीछे सरकारी आदमियों से रार करता है। जिन दीन-दुखी रोगियों की परछाईं से भी डाक दर लोग डरते हैं, उनकी दवा-दारू करता है। उसे अपनी जान का, धन का तनिक भी लोभ नहीं है। यह इतना बड़ा राज कैसे सँभालेगा? अत्याचारियों को कैसे दण्ड देगा? हाय, मेरी प्यारी रानी, जिससे मैंने अभी महीने भर हुए ब्याह किया है, मेरे बिना कैसे जियेगी? कौन उससे प्रेम करेगा? हाय!
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