सदाबहार >> प्रेमाश्रम (उपन्यास) प्रेमाश्रम (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘प्रेमाश्रम’ भारत के तेज और गहरे होते हुए राष्ट्रीय संघर्षों की पृष्ठभूमि में लिखा गया उपन्यास है
अर्दली के कई चपरासी बोले, यह बनिया गोली मार देने के लायक है। ऐसा खराब आटा उम्र भर नहीं खाया। न जाने क्या चीज मिला दी है कि हजम ही नहीं होता। घी ऐसा बदबू करता था कि दाल खाते न बनती थी इस पर तो जुर्माना होना चाहिए। उल्टे हिसाब करने को कहता है।
एक कान्सटेबिल महाशय ने कहा, हम इसे खूब जानते हैं, छटा हुआ है। चीनी दी तो उसमें आधी बालू, घी में आधी घुइयाँ, आटे में आधा चोकर, दाल में आधा कूड़ा! इसे तो ऐसी जगह मारे जहाँ पानी न मिले।
कई साईस बोले, घोड़ों को जो दाना दिया है वह बिल्कुल घुना हुआ, आधा चना आधा चोकर। घोड़ों ने सूँघा तक नहीं। साहब से कह दें तो अभी हंटर पड़ने लगें।
तहसीलदार– ये सब शिकायतें पहले क्यों नहीं कीं?
कई आदमी– हुजूर रोज तो हाय-हाय कर रहे हैं!
तहसीलदार– (प्रेमशंकर की ओर देखकर) मुझसे किसी ने भी नहीं कहा। अब यह सब कुछ नहीं सुनूंगा। जिसके जिम्मे जो कुछ निकले, कौड़ी-कौड़ी दे दो। साहजी, अपना हिसाब निकालो।
बिसेसर– मौल बख्श अर्दली आटा, ऽ३ घी ऽ।। चावल ऽ२, दाल ऽ१, मसाला ऽ।, तमाखू ऽ।, कथ्या-सुपारी २ छटाँग, चीनी ५ छटाँक कुल ३ ) रुपये।
तहसीलदार– कहाँ है मौला बख्श। दाम देकर रसीद लो।
एक अर्दली– इस नाम का हमारे यहाँ कोई आदमी नहीं है।
बिसेसर– हैं क्यों नहीं? लम्बे-लम्बे हैं, छोटी दाढ़ी है, मुँह पर शीतला का दाग है, सामने के दो-तीन दाँत टूटे हुए हैं।
कई अर्दली– इस हुलिया का यहाँ कोई आदमी ही नहीं है। पहचान हममें से कौन है?
बिसेसर– कहीं चल दिये होंगे और क्या?
तहसीलदार– अच्छा दूसरा नाम बोलो।
बिसेसर– धन्नू, अहीर, चावल ऽ३, आटा ऽ२, घी ऽ१, खली ऽ४, दाना और चोकर ऽ८, तमाखू– कुल दो रुपये।
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