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प्रेमाश्रम (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :896
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8589

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‘प्रेमाश्रम’ भारत के तेज और गहरे होते हुए राष्ट्रीय संघर्षों की पृष्ठभूमि में लिखा गया उपन्यास है


विद्या– तुम उनका स्वभाव जानते नहीं। वह चाहे दादा जी के साये से भी भागें, पर उनके नाम पर जान देती हैं, हृदय से उनकी पूजा करती हैं।

ज्ञान– इधर भी चलती हैं, उधर भी।

विद्या– इधर लोक लाज से चलती हैं, हृदय उधर ही है।

ज्ञान– तो फिर मुझे कोई और ही उपाय सोचना पडे़गा।

विद्या– ईश्वर के लिए ऐसी बातें न किया करो।

२८

श्रद्घा की बातों से पहले तो ज्ञानशंकर को शंका हुई, लेकिन विचार करने पर यह शंका निवृत्त हो गयी, क्योंकि इस मामले में प्रेमशंकर का अभियुक्त हो जाना अवश्यम्भावी था। ऐसी अवस्था में श्रद्धा के निर्बल क्रोध से ज्ञानशंकर को कोई हानि न हो सकती थी।

ज्ञानशंकर ने निश्चय किया कि इस विषय में मुझे हाथ-पैर हिलाने की कोई जरूरत नहीं है। सारी व्यवस्था मेरे इच्छानुकूल है। थानेदार स्वार्थवश इस मामले को बढ़ायेगा, सारे गाँव को फँसाने की चेष्टा करेगा और उसका सफल होना असन्दिग्ध है गाँव में कितनी ही एका हो, पर कोई-न-कोई मुखबिर निकल ही आयेगा। थानेदार ने लखनपुर के जमींदारी दफ्तर की जाँच-पड़ताल अवश्य ही की होगी। वहाँ मेरे ऐसे दो-चार पत्र अवश्य ही निकल आयेंगे जिनसे गाँववालों के साथ भाई-साहब की सहानुभूति और सदिच्छा सिद्ध हो सके। मैंने अपने कई पत्रों में गौस खाँ को लिखा है कि भाई साहब का यह व्यवहार मुझे पसन्द नहीं। हाँ, एक बात हो सकती है, सम्भव है कि गाँववाले रिश्वत देकर अपना गला छुड़ा लें और थानेदार अकेले मनोहर का चालान करे। लेकिन ऐसे संगीन मामले में थानेदार को इतना साहस नहीं हो सकता। वह यथासाध्य इस घटना को महत्त्वपूर्ण सिद्ध करेगा। भाई साहब से अधिकारी वर्ग उनके निर्भय लोकवाद के कारण पहले से ही बदगुमान हो रहे हैं। सब-इन्स्पेक्टर उन्हें इस षड्यन्त्र का प्रेरक साबित करके अपना रंग जरूर जमायेगा। अभियोग सफल हो गया तो उसकी तरक्की भी होगी, पारितोषिक भी मिलेगा। गाँववाले कोई बड़ी रकम देने की सामर्थ्य नहीं रखते और थानेदार छोटी रकम के लिए अपनी आशाओं की मिट्टी में न मिलायेगा। बन्धु-विरोध का विचार मिथ्या है। संसार में सब अपने लिए जीते और मरते हैं, भावुकता के फेर में पड़कर अपने पैरों में कुल्हाड़ी मारना हास्यजनक है।

ज्ञानशंकर का अनुमान अक्षरशः सत्य निकला। लखनपुर के प्रायः सभी बालिग आदमियों का चालान हुआ। बिसेसर साह को टैक्स की धमकी ने भेदिया बना दिया। जमींदारी दफ्तर का भी निरीक्षण हुआ। एक सप्ताह पीछे हाजीपुर में प्रेमशंकर की खाना तलाशी हुई और वह हिरासत में ले लिए गये।

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