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प्रेमाश्रम (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :896
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8589

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‘प्रेमाश्रम’ भारत के तेज और गहरे होते हुए राष्ट्रीय संघर्षों की पृष्ठभूमि में लिखा गया उपन्यास है


इर्फान– आप यह तसलीम करते हैं कि यह सब मुलजिम लखनपुर के खास आदमियों में है?

तहसीलदार– हो सकते हैं, लेकिन जात के अहीर, जुलाहे और कुर्मी हैं।

इर्फान– अगर कोई चमार लखपती हो जाय तो आप उससे अपनी जूती गँठवाने का काम लेते हुए हिचकेंगे या नहीं?

तहसीलदार– उन आदमियों में कोई लखपती नहीं है।

इर्फान– मगर सब काश्तकार हैं, मजदूर नहीं। उनसे आपको घास छिलवाने का क्या मजाज था?

तहसीलदार– सरकारी जरूरत।

इर्फान– क्या यह सरकारी जरूरत मजदूरों को मजदूरी दे कर काम कराने से पूरी न हो सकती थी?

तहसीलदार– मजदूरों की तायदाद उस गाँव में ज्यादा नहीं है।

इर्फान– आपके चपरासियों में अहीर, कुर्मी या जुलाहे न थे? आपने उनसे यह काम क्यों न लिया?

तहसीलदार– उनका यह काम नहीं है।

इर्फान– और काश्तकारों का यह काम है?

तहसीलदार– जब जरूरत पड़ती है तो उनसे भी यह काम लिये जाते हैं।

इर्फान– आप जानते हैं जमीन लीपना किसका काम है?

तहसीलदार– यह किसी खास जात का काम नहीं है।

इर्फान– मगर आपको इससे तो इन्कार नहीं हो सकता कि आम तौर पर अहीर और ठाकुर यह नहीं करते?

तहसीलदार– जरूरत पड़ने पर कर सकते हैं।

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