नाटक-एकाँकी >> संग्राम (नाटक) संग्राम (नाटक)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द्र द्वारा आज की सामाजिक कुरीतियों पर एक करारी चोट
फत्तू– काकी, गाती ही रहेगी?
सलोनी– जा तुझसे नहीं बोलती। तू भी डर गया।
फत्तू– काकी, इन सभी से कौन लड़ता? इजलास पर जाकर जो सच्ची बात है वह कह दूंगा।
मंगरू– पुलिस के सामने जमींदार कोई चीज नहीं।
सलोनी– सच्चाई के सामने जमींदार, सरकार कोई चीज नहीं।
मंगरू– सच बोलने में निबाह नहीं है।
हरदास– सच्चे की गर्दन सभी जगह मारी जाती है।
सलोनी– अपना धर्म तो नहीं बिगड़ता। तुम सब कायर हो। तुम्हारा मुंह देखना पाप है। मेरे सामने से हट जाओ।
[प्रस्थान]
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