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संग्राम (नाटक)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :283
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8620

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मुंशी प्रेमचन्द्र द्वारा आज की सामाजिक कुरीतियों पर एक करारी चोट


इन्स्पेक्टर– यह चंद किताबें हैं, मैजिनी के मजामीन, वीर हारड़ी का हिन्दुस्तान का सफरनामा, भक्त प्रहलाद का वृत्तांत, टालस्टाल की कहानियां।

सुपरिंटेंडेट– यह मिसमेरिजिम की किताब है।

सुपरिंटेंडेट– ओह, यह बड़े काम का चीज है।

इन्स्पेक्टर– यह दवाइयों का बक्स है।

सुपरिंटेंडेट– देहातियों को बस में करने के लिए! यह भी बहुत काम का चीज है।

इन्स्पेक्टर– यह मैजिक लालटेन है।

सुपरिंटेंडेट– बहुत ही काम का चीज है।

सुपरिंटेंडट– यह लेन देन की बही है।

सुपरिंटेडेंट– मोस्ट इम्पाटेंट! बड़े काम का चीज। इतना सबूत काफी है। अब चलना चाहिए।

एक कानिस्टिबल– हुजूर, बगीचे में एक अखाड़ा भी है।

सुपर्रिटेंडेंट– बहुत बड़ा सबूत है।

दूसरा कानिस्टिबल– हुजूर, अखाड़े के आगे एक गऊशाला भी है। कई गाय– भैसें बंधी हुई है।

सुपरिंटेंडेट– दूध पीता है जिससे बगावत करने के लिए ताकत हो जाये। बहुत बड़ा सबूत है। वेल सबलसिंह, हम तुमको गिरफ्तार करता है।

सबल– आपको अधिकार है।

[चेतनदास का प्रवेश]

इन्स्पेक्टर– आइए स्वामी जी, तशरीफ लाइए।

चेतन– मैं जमानत देता हूं।

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