नाटक-एकाँकी >> संग्राम (नाटक) संग्राम (नाटक)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द्र द्वारा आज की सामाजिक कुरीतियों पर एक करारी चोट
सबल– और लोग आपको इस काम में मदद दे सकते हैं, मैं नहीं दे सकता। मैं रैयत का मित्र बन कर रहना चाहता हूं, शत्रु बन कर नहीं। अगर रैयत को गुलामी में जकड़ और अंधकार में डाले रखने के लिए जमींदारी की सृष्टि की गयी है तो मैं अत्याचार का पुरस्कार न लूंगा चाहे वह रियासत ही क्यों न हो। मैं अपने देशबंधुओं के मानसिक और आत्मिक विकास का इच्छुक हूं। दूसरों को मूर्ख और अशक्त रख कर अपना ऐश्वर्य नहीं चाहता।
सपरिटेंडेंट– तुम सरकार से बगावत करता है।
सबल– अगर इसे बगावत कहा जाता है तो मैं बागी ही हूं।
सुपरिटेंडेट– हां, यही बगावत है। देहातों में पंचायत खोलना बगावत है, लोगों को शराब पीने से रोकना बगावत है, लोगों को अदालतों में जाने से रोकना बगावत है, सरकारी आदमियों का रसद-बेगार बंद करना बगावत है।
सबल– तो फिर मैं बागी हूं।
अचल– मैं भी बागी हूं।
सुपरिंटेंडेट– गुस्ताख लड़का।
इन्स्पेक्टर– हुजूर, कमरे में चलें, वहां मैंने बहुत– से कागजात जमा कर रखे हैं।
सुपरिंटेंडेट– चलो।
इन्स्पेक्टर– देखिए, यह पंचायतों की फिहरिस्त है और पंचों के नाम है।
सुपरिंटेंडेट– बहुत काम का चीज है।
इन्स्पेक्टर– यह पंचायतों पर एक मजमून है।
सुपरिंटेंडेट– बहुत काम का चीज है।
इन्स्पेक्टर– यह कौम के लीडरों की तस्वीरों का अल्बम है।
सुपरिंटेंडेटन– बहुत काम का चीज है।
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