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संग्राम (नाटक)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :283
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8620

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मुंशी प्रेमचन्द्र द्वारा आज की सामाजिक कुरीतियों पर एक करारी चोट

तीसरा दृश्य

[स्थान– स्वामी चेतनदास की कुटी, समय– संध्या।]

चेतनदास– (मन में) यह चाल मुझे खूब सूझी। पुलिस वाले अधिक-से-अधिक कोई अभियोग चलाते। सबलसिंह ऐसे काटों से डरने वाला मनुष्य नहीं है। पहले मैंने समझा था उस चाल से यहां उसका खूब अपमान होगा। पर वह अनुमान ठीक न निकला। दो घंटे पहले शहर में सबल की जितनी प्रतिष्ठा थी, अब उसमें सतगुनी है। अधिकारियों की दृष्टि में चाहे वह गिर गया हो, पर नगरवासियों की दृष्टि में अब वह देव– तुल्य है। यह काम हलधर ही पूरा करेगा। मुझे उसके पीछे का रास्ता साफ करना चाहिए।

[ज्ञानी का प्रवेश]

ज्ञानी– महाराज, आप उस समय इतनी जल्दी चले आये कि मुझे आपसे कुछ कहने का अवसर ही न मिला। यदि आप सहाय न होते तो आज मैं नहीं की न रहती। पुलिस वाले किसी दूसरे व्यक्ति की जमानत न लेते। आपके योगबल ने उन्हें परास्त कर दिया।

चेतन– भाई, यह सब ईश्वर की महिमा है। मैं तो केवल उसका तुच्छ सेवक हूं।

ज्ञानी– आपके सम्मुख इस समय मैं बहुत निर्लज्ज बनकर आयी हूं। मैं अपराधिनी हूं, मेरा अपराध क्षमा कीजिए। आपने मेरे पतिदेव के विषय में जो बातें कहीं थीं, वह एक-एक अक्षर सच निकली। मैंने आप पर अविश्वास किया। मुझसे यह घोर अपराध हुआ। मैं अपने पति को देव-तुल्य समझती थी। मुझे अनुमान हुआ कि आपको किसी ने भम्र में डाल दिया है। मैं नहीं जानती थी कि आप अन्तर्यामी हैं। मेरा अपराध क्षमा कीजिए।

चेतन– तुझे मालूम नहीं है, आज तेरे पति ने कैसा पैशाचिक काम कर डाला है। मुझे इसके पहले तुझसे कहने का अवसर नहीं प्राप्त हुआ।

ज्ञानी– नहीं महाराज, मुझे मालूम है। उन्होंने स्वयं मुझसे सारा वृत्तांत कह सुनाया है। भगवान् यदि मैंने पहले ही आपकी चेतावनी पर ध्यान दिया होता तो आज इस हत्याकांड की नौबत न आती। यह सब मेरी अश्रद्धा का दुष्परिणाम है। मैंने आप जैसे महात्मा पुरुष का अविश्वास किया, उसी का यह दंड है। अब मेरा उद्धार आपके सिवा और कौन कर सकता है। आपकी दासी हूं, आपकी चेरी हूं। मेरे अवगुणों को न देखिए। अपनी विशाल दया से मेरा बेड़ा पार लगाइए।

चेतन– अब मेरे वश की बात नहीं। मैंने तेरे कल्याण के लिए, तेरी मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए बड़े-बडे अनुष्ठान किये थे। मुझे निश्चय था कि तेरा मनोरथ सिद्ध होगा। पर इस पापाभिनय ने मेरे समस्त अनुष्ठानों को विफल कर दिया। मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि यह कुकर्म तेरे कुल का सर्वनाश कर देगा।

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