उपन्यास >> सेवासदन (उपन्यास) सेवासदन (उपन्यास)प्रेमचन्द
|
361 पाठक हैं |
यह उपन्यास घनघोर दानवता के बीच कहीं मानवता का अनुसंधान करता है
कृष्णचन्द्र– इससे क्या होगा?
उमानाथ– इससे यह होगा कि या तो वह फिर कन्या से विवाह करेंगे या हर्जाना देंगे।
कृष्णचन्द्र– पर क्या और बदनामी न होगी?
उमानाथ– बदनामी जो कुछ होनी थी हो चुकी, अब किस बात का डर है? मैंने एक हजार रुपए तिलक में दिए, चार-पांच सौ खिलाने-पिलाने में खर्च किए, यह सब क्यों छोड़ दूंगा? यही रुपए कंगाल-कुलीन को दे दूंगा, तो वह खुशी से विवाह करने पर तैयार हो जाएगा। जरा इन शिक्षित महात्माओं की कलई तो खुलेगी।
कृष्णचन्द्र ने लंबी सांस लेकर कहा– मुझे विष दे दो, तब यह मुकदमा दायर करो।
उमानाथ ने क्रुद्ध होकर कहा– आप क्यों इतना डरते हैं?
कृष्णचन्द्र– मुकदमा दायर करने का निश्चय कर लिया है?
उमानाथ– हां, मैंने निश्चय कर लिया है। कल सारे शहर में बड़े-बड़े वकील-बैरिस्टर जमा थे। यह मुकदमा अपने ढंग का निराला है। उन लोगों ने बहुत कुछ देखभाल कर तब यह सलाह दी है। दो वकीलों को तो बयाना तक दे आया हूं।
कृष्णचन्द्र ने निराश होकर कहा– अच्छी बात है। दायर कर दो।
उमानाथ– आप इससे असंतुष्ट क्यों हैं?
कृष्णचन्द्र– जब तुम आप ही नहीं समझते, तो मैं क्या बतलाऊं? जो बात अभी चार गांव में फैली है, वह सारे शहर में फैल जाएगी। सुमन अवश्य ही इजलास पर बुलाई जाएगी, मेरा नाम गली-गली बिकेगा।
उमानाथ– अब इससे कहां तक डरूं? मुझे भी अपनी दो लड़कियों का विवाह करना है। यह कलंक अपने माथे लगाकर उनके विवाह में क्यों बाधा डालूं?
कृष्णचन्द्र– तो तुम यह मुकदमा इसलिए दायर करते हो, जिसमें तुम्हारे नाम पर कोई कलंक न रहे।
उमानाथ ने सगर्व कहा– हां, अगर आप उसका यह अर्थ लगाते हैं तो यही सही। बारात मेरे द्वार से लौटी है। लोगों को भ्रम हो रहा है कि सुमन मेरी लड़की है। सारे शहर में मेरा ही नाम लिया जा रहा है। मेरा दावा दस हजार का होगा। अगर पांच हजार की डिग्री हो गई, तो शान्ता का किसी उत्तम कुल में ठिकाना लग जाएगा। आप जानते हैं, जूठी वस्तु को मिठास के लोभ से लोग खाते हैं। जब तक रुपए का लोभ न होगा शांता का विवाह कैसे होगा? इस प्रकार से मेरे कुल में भी कलंक लग गया। पहले जो लोग मेरे यहां संबंध करने में अपनी बड़ाई समझते थे, वे अब बिना लंबी थैली के सीधे बात भी न करेंगे, समस्या यह है।
|