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उपन्यास >> सेवासदन (उपन्यास)

सेवासदन (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :535
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8632

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यह उपन्यास घनघोर दानवता के बीच कहीं मानवता का अनुसंधान करता है


जोहरा जान बोली– मैं अपनी बहनों से यही कहना चाहती हूं कि वह आइंदा से हलाल-हराम का खयाल रखें। गाना-बजाना हमारे लिए हलाल है। इसी हुनर में कमाल हासिल करो। बदकार रईसों के शुहबत (कामातुरता) का खिलौना बनना छोड़ना चाहिए। बहुत दिनों तक गुनाह की गुलामी की। अब हमें अपने को आजाद करना चाहिए। हमको खुदा ने क्या इसलिए पैदा किया है कि अपना हुस्न, अपनी जवानी, अपनी रूह, अपना ईमान, अपनी गैरत, अपनी हया, हरामकार शुहबत-परस्त आदमियों की नजर करें? जब कोई मनचला नौजवान रईस हमारे ऊपर दीवाना होता जाता है, तो हमको कितनी खुशी होती है। हमारी नायिका फूली नहीं समाती। सफरदाई बगलें बजाने लगते हैं और हमें तो ऐसा मालूम होता है, गोया सोने की चिड़िया फंस गई, लेकिन बहनो, यह हमारी हिमाकत है। हमने उसे अपने दाम में नहीं फंसाया, बल्कि उसके दाम में खुद फंस गईं। उसने सोने और चांदी से हमको खरीद लिया। हम अपनी अस्मत (पवित्रता) जैसी बेबहा (अमूल्य) जिन्स खो बैठीं। आइंदा से हमारा वह वतीरा (ढंग) होना चाहिए कि अगर अपने में से किसी को बुराई करते देखें, तो उसी उक्त बिरादरी से खारिज कर दें।

सुन्दरबाई ने कहा– जोहरा बहन ने बहुत अच्छी तजबीज की है। मैं भी यही चाहती हूं। अगर हमारे यहां किसी की आमदरफ्त होने लगे, तो पहले यह देखना चाहिए कि वह कैसा आदमी है। अगर उसे हमसे मुहब्बत हो और अपना दिल भी उस पर आ जाए तो शादी करनी चाहिए। लेकिन अगर वह शादी न करके महज शुहबतपरस्ती के इरादे से आता हो, तो उसे फौरन दुत्कार देना चाहिए। हमें अपनी इज्जत कौड़ियों पर न बेचनी चाहिए।

रामप्यारी ने कहा– स्वामी गजानन्द ने हमें एक किताब दी है, जिसमें लिखा है कि सुंदरता हमारे पूर्व जन्म के कुछ अच्छे कर्मों का फल है, लेकिन हम अपने पूर्व जन्म की कमाई भी इस जन्म में नष्ट कर देती हैं। जो बहने जोहरा की बात को पसंद करती हों, वे हाथ उठा दें।

इस पर बीस-पच्चीस वेश्याओं ने हाथ उठाए।

रामप्यारी ने फिर कहा– जो इसें पसंद न करती हों, वह भी हाथ उठा दें। इस पर एक भी हाथ न उठा।

रामप्यारी– कोई हाथ न उठा। इसका यह आशय है कि हमने जोहरा की बात मान ली। आज का दिन मुबारक है।

वृद्धा महबूब जान बोली– मुझे कहते हुए यही डर लगता है कि तुम लोग कहोगी, सत्तर चूहे खाकर बिल्ली चली हज को, पर आज के सातवें दिन मैं सचमुच हज करने चली जाऊंगी। मेरी जिंदगी तो जैसे कटी वैसे कटी, पर इस वक्त तुम्हारी यह नीयत देखकर मुझे कितनी खुशी हो रही है, वह मैं जाहिर नहीं कर सकती। खुदा-ए-पाक तुम्हारे इरादों को पूरा करे।

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