सदाबहार >> वरदान (उपन्यास) वरदान (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘वरदान’ दो प्रेमियों की कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले...
माधवी– उज्ज्वल, जैसे बगुले का पर।
विरजन– सोहाग का जोड़ा केसरिया रंग का होता है।
माधवी– मेरा श्वेत रहेगा।
विरजन– तुझे चन्द्रहार बहुत भाता था। मैं अपना दे दूंगी।
माधवी– हार के स्थान पर कंठी दे देना।
विरजन– कैसी बातें कर रही है?
माधवी– अपने श्रृंगार की!
विरजन– तेरी बातें समझ में नहीं आती। तू इस समय इतनी उदास क्यों है? तूने इस रत्न के लिए कैसी-कैसी तपस्याएं की, कैसा-कैसा योग साधा, कैसे-कैसे व्रत किये और तुझे जब वह रत्न मिल गया तो हर्षित नहीं देख पड़ती!
माधवी– तुम विवाह की बातचीत करती हो इससे मुझे दुःख होता है।
विरजन– यह तो प्रसन्न होने की बात है।
माधवी– बहिन! मेरे भाग्य में प्रसन्नता लिखी ही नहीं! जो पक्षी बादलों में घोंसला बनाना चाहता है वह सर्वदा डालियों पर रहता है। मैंने निर्णय कर लिया है कि जीवन का यह शेष समय इसी प्रकार प्रेम का सपना देखने में काट दूंगी।
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