सदाबहार >> वरदान (उपन्यास) वरदान (उपन्यास)प्रेमचन्द
|
1 पाठकों को प्रिय 24 पाठक हैं |
‘वरदान’ दो प्रेमियों की कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले...
माधवी इसके लिए पहले ही प्रस्तुत थी, तुरन्त बोली– स्वामीजी! मैं परम अबला और बुद्विहीन स्त्री हूँ। परन्तु मैं आपको विश्वास दिलाती हूँ कि निज विलास का ध्यान आज तक एक पल के लिए भी मेरे मन में नहीं आया। यदि आपने यह विचार किया कि मेरे प्रेम का उद्देश्य केवल यह है कि आपके चरणों में सांसारिक बन्धनों की बेड़ियाँ डाल दूं, तो (हाथ जोड़कर) आपने इसका तत्व नहीं समझा। मेरे प्रेम का उद्देश्य वही था, जो आज मुझे प्राप्त हो गया। आज का दिन मेरे जीवन का सबसे शुभ दिन है। आज मैं अपने प्राणनाथ के सम्मुख खड़ी हूं और अपने कानों से उनकी अमृतमयी वाणी सुन रही हूं। स्वामीजी! मुझे आशा न थी कि जीवन में मुझे यह दिन देखने का सौभाग्य होगा। यदि मेरे पास संसार का राज्य होता तो मैं इसी आनन्द से उसे आपके चरणों में समर्पण कर देती। मैं हाथ जोड़कर आपसे प्रार्थना करती हूं कि मुझे अब इन चरणों से अलग न कीजियेगा। मैं संन्यास ले लूंगी और आपके संग रहूंगी। वैरागिनी बनूंगी, भभूति रमाऊंगी; परन्तु आपका संग न छोडूंगी। प्राणनाथ! मैंने बहुत दुःख सहे हैं, अब यह जलन नहीं सही जाती।
यह कहते-कहते माधवी का कंठ रुंध गया और आंखों से प्रेम की धारा बहने लगी। उससे वहां न बैठा गया। उठ प्रणाम किया और विरजन के पास आकर बैठ गई। वृजरानी ने उसे गले लगा लिया और पूछा– क्या बातचीत हुई?
माधवी– जो तुम चहाती थीं।
वृजरानी– सच, क्या बोले?
माधवी– यह न बताऊंगी।
वृजरानी को मानो पड़ा हुआ धन मिल गया। बोली– ईश्वर ने बहुत दिनों में मेरा मनोरथ पूरा किया। मैं अपने यहां से विवाह करूंगी।
माधवी नैराश्य भाव से मुस्काई। विरजन ने कम्पित स्वर से कहा– हमको भूल तो न जायेगी? उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। फिर वह स्वर संभालकर बोली– हमसे तू बिछुड़ जायेगी।
माधवी– मैं तुम्हें छोड़कर कहीं न जाऊंगी।
विरजन– चल, बातें न बना।
माधवी– देख लेना।
विरजन– देखा है। जोड़ा कैसा पहिनेगी?
|