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वरदान (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :259
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8670

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‘वरदान’ दो प्रेमियों की कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले...


माधवी– देश की सेवा।

बालाजी की आंखों के सामने से एक पर्दा-सा हट गया। वे माधवी का मनोरथ जान गये और बोले–  माधवी इस विवाह को कितने दिन हुए?

बालाजी के नेत्र सजल हो गये और मुख पर जातीयता के मद का उन्माद– सा छा गया। भारत माता! आज इस पतितावस्था में भी तुम्हारे अंक में ऐसी-ऐसी देवियां खेल रही हैं, जो एक भावना पर अपने यौवन और जीवन की आशाएं समर्पण कर सकती हैं। बोले–  ऐसे पति को तुम त्याग क्यों नहीं देती?

माधवी ने बालाजी की ओर अभिमान से देखा और कहा– स्वामी जी! आप अपने मुख से ऐसा न कहें! मैं आर्य बाला हूं। मैंने गान्धारी और सावित्री के कुल में जन्म लिया है। जिसे एक बार मन में अपना पति मान चुकी उसे नहीं त्याग सकती। यदि मेरी आयु इसी प्रकार रोते-रोते कट जाए, तो भी अपने पति की ओर से मुझे कुछ भी खेद न होगा। जब तक मेरे शरीर में प्राण रहेगा मैं ईश्वर से उनका हित चाहती रहूंगी। मेरे लिए यही क्या कम है, जो ऐसे महात्मा के प्रेम ने मेरे हृदय में निवास किया है! मैं इसी का अपना सौभाग्य समझती हूं। मैंने एक बार अपने स्वामी को दूर से देखा था। वह चित्र एक क्षण के लिए भी आंखों से नहीं उतरा। जब कभी मैं बीमार हुई हूं, तो उसी चित्र ने मेरी शुश्रुषा की है। जब कभी मैंने वियोग के आंसू बहाये हैं, तो उसी चित्र ने मुझे सान्त्वना दी है। उस चित्र वाले पति को मैं, कैसे त्याग दूं? मैं उसकी हूँ और सदैव उसी की रहूंगी। मेरा हृदय और मेरे प्राण सब उनकी भेंट हो चुके हैं। यदि वे कहें तो आज मैं अग्नि के अंक में ऐसे हर्षपूर्वक जा बैठूं जैसे फूलों की शैय्या पर। यदि मेरे प्राण उनके किसी काम आयें तो मैं उसे ऐसी प्रसन्नता से दे दूँ जैसे कोई उपासक अपने इष्टदेव को फूल चढ़ाता हो।

माधवी का मुख मण्डल प्रेम-ज्योति से अरुण हो रहा था। बालाजी ने सब कुछ सुना और चुप हो गये। सोचने लगे– यह स्त्री है; जिसने केवल मेरे ध्यान पर अपना जीवन समर्पण कर दिया है। इस विचार से बालाजी के नेत्र अश्रुपूर्ण हो गये। जिस प्रेम ने एक स्त्री का जीवन जलाकर भस्म कर दिया हो उसके लिए एक मनुष्य के धैर्य को जला डालना कोई बात नहीं!

प्रेम के सामने धैर्य कोई वस्तु नहीं है। वह बोले– माधवी तुम जैसी देवियां भारत की गौरव हैं। मैं बड़ा भाग्यवान हूं कि तुम्हारे प्रेम-जैसी अनमोल वस्तु इस प्रकार मेरे हाथ आ रही है। यदि तुमने मेरे लिए योगिनी बनना स्वीकार किया है तो मैं भी तुम्हारे लिए इस संन्यास और वैराग्य का त्याग कर सकता हूं। जिसके लिए तुमने अपने को मिटा दिया है, वह तुम्हारे लिए बड़ा-से-बड़ा बलिदान करने से भी नहीं हिचकिचायेगा।

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