सदाबहार >> वरदान (उपन्यास) वरदान (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘वरदान’ दो प्रेमियों की कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले...
यह कहकर कमलाचरण ने बुलबुल को अंगूठे पर बिठा लिया।
सेवती– मेरी खबर सुनते ही नाचने लगोगे।
कमला– तो अच्छा है कि आप न सुनाइए। मैं तो आज यों ही नाच रहा हूं। इस पट्ठे ने आज नाक रख ली। सारा नगर दंग रह गया। नवाब मुन्ने खां बहुत दिनों से मेरी आंखों में चढ़े हुए थे। एक मास होता है, मैं उधर से निकला, तो आप कहने लगे– मियाँ, कोई पट्ठा तैयार हो तो लाओ, दो-दो चौंच हो जायें। यह कहकर आपने अपना पुराना बुलबुल दिखाया। मैंने कहा– कृपानिधान। अभी तो नहीं। परन्तु एक मास में यदि ईश्वर चाहेगा तो आपसे अवश्य एक जोड़ होगी, और बद-बद कर आज । आगा शेरअली के अखाड़े में बदान ही ठहरी। पचास-पचास रुपये की बाजी थी।
लाखों मनुष्य जमा थे। उनका पुराना बुलबुल, विश्वास मानो सेवती, कबूतर के बराबर था। परन्तु जिस समय यह पट्ठा चला है तो इसकी उठी हुई गर्दन, मतवाली चाल और गठीलेपन पर लोग धन्य-धन्य करने लगे। जाते-ही-जाते इसने उसका टेटुवा पकड़ लिया। परन्तु वह भी केवल फूला हुआ नाथ सारे नगर के बुलबुलों को पराजित किये बैठा था। बलपूवर्क लात चलायी। इसने बार-बार नचाया और फिर झपटकर उसकी चोटी दबायी। उसने फिर चोट की। यह नीचे आया। चतुर्दिक कोलाहल मच गया– मार लिया मार लिया। तब तो मुझे भी क्रोध आया डपटकर जो ललकारता हूं तो यह ऊपर और वह नीचे दबा हुआ है। फिर तो उसने कितना ही सिर पटका कि ऊपर आ जाए, परन्तु इस शेर ने ऐसा दाबा कि सिर उठाने न दिया। नबाब साहब स्वयं उपस्थित थे। बहुत चिल्लाये, पर क्या हो सकता है? इसने उसे ऐसा दबोचा था जैसे बाज चिड़िया को। आखिर बकटुट भागा। इसने पाली के उस पार तक पीछा किया, पर न पा सका। लोग विस्मय से दंग हो गये। नवाब साहब का तो मुख मलिन हो गया। हवाइयाँ उड़ने लगीं। रुपये हारने की तो उन्हें कुछ चिंन्ता नहीं, क्योंकि लाखों की आय है। परन्तु नगर में जो उनकी धाक जमी हुई थी, वह जाती रही। रोते हुए घर को सिधारे। सुनता हूं, यहां से जाते ही उन्होंने अपने बुलबुल को जीवित ही जमीन में गाड़ दिया। यह कहकर कमलाचरण ने जेब खनखनायी।
सेवती– तो फिर खड़े क्या कर रहे हो? आगरे वाले की दुकान पर आदमी भेजो।
कमला– तुम्हारे लिए क्या लाऊं, भाभी?
सेवती– दूध के कुल्हड़।
कमला– और भैया के लिए?
सेवती– दो-दो लुगइयां।
यह कहकर दोनों ठट्टा मारकर हंसने लगे।
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