सदाबहार >> वरदान (उपन्यास) वरदान (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘वरदान’ दो प्रेमियों की कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले...
सेवती– पहले गा दो तो लिखूं।
चन्द्रा– न लिखोगी। फिर बातें बनाने लगोगी।
सेवती– तुम्हारी शपथ, लिख दूंगी, गाओ।
चन्द्रा गाने लगी–
तुम तो श्याम बड़े बेखबर हो।
तुम तो श्याम पीयो दूध के कुल्हड़, मेरी तो पानी पै गुजर,
पानी पे गुजर हो। तुम तो श्याम बड़े बेखबर हो।
अन्तिम शब्द कुछ ऐसे बेसुरे से निकले कि हँसी को रोकना कठिन हो गया। सेवती ने बहुत रोका पर न रुक सकी। हँसते-हँसते पेट में बल पड़ गया। चन्द्रा ने दूसरा पद गाया–
मेरी तो आपी पै नजर आपी पै नजर हो।
तुम तो श्याम....
‘लुगइयां’ पर सेवती हँसते-हँसते लोट गयी। चन्द्रा ने सजल नेत्र होकर कहा– अब तो बहुत हँस चुकीं। लाऊं कागज?
सेवती– नहीं, नहीं, अभी तनिक हँस लेने दो।
सेवती हँस रही थी कि बाबू कमलाचरण का बाहर से शुभागमन हुआ, पन्द्रह सोलह वर्ष की आयु थी। गोरा-गोरा गेहुंआ रंग। छरहरा शरीर, हँसमुख, भड़कीले वस्त्रों से शरीर को अलंकृत किये, इत्र में बसे, नेत्रों में सुरमा, अधर पर मुस्कान और हाथ में बुलबुल लिये आकर चारपाई पर बैठ गए। सेवती बोली– कमलू। मुंह मीठा कराओ, तो तुम्हें ऐसे शुभ समाचार सुनायें कि सुनते ही फड़क उठो।
कमला– मुंह तो तुम्हारा आज अवश्य ही मीठा होगा। चाहे शुभ समाचार सुनाओ, चाहे न सुनाओ। आज इस पट्ठे ने वह विजय प्राप्त की है कि लोग दंग रह गए।
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