सदाबहार >> वरदान (उपन्यास) वरदान (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘वरदान’ दो प्रेमियों की कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले...
जब बहुत देर हो गई और कमला कमरे से न निकला तब वृजरानी स्वयं आयी और बोली– क्या आज घर में आने की शपथ खा ली है। राह देखते-देखते आँखें पथरा गयीं।
कमला– भीतर जाते भय लगता है।
विरजन– अच्छा चलो मैं संग-संग चलती हूँ, अब तो नहीं डरोगे?
कमला– मुझे प्रयाग जाने की आज्ञा मिली है।
विरजन– मैं भी तुम्हारे संग चलूँगी!
यह कहकर विरजन ने कमलाचरण की ओर आंखें उठायीं उनमें अंगूर के दाने लगे हुए थे। कमला हार गया। इन मोहनी आँखों में आँसू देखकर किसका हृदय था, कि अपने हठ पर दृढ़ रहता? कमला ने उसे अपने कंठ से लगा लिया और कहा– मैं जानता था कि तुम जीत जाओगी। इसीलिए भीतर न जाता था। रात-भर प्रेम-वियोग की बातें होती रहीं! बार-बार आँखें परस्पर मिलती मानो वे फिर कभी न मिलेंगी! शोकः किसे मालूम था कि यह अंतिम भेंट है। विरजन को फिर कमला से मिलना नसीब न हुआ।
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