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वरदान (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :259
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8670

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‘वरदान’ दो प्रेमियों की कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले...

(१७) कमला के नाम विरजन के पत्र

मझगाँव

‘प्रियतम,
प्रेम पत्र आया। सिर पर चढ़ाकर नेत्रों से लगाया। ऐसे पत्र तुम न लिखा करो! हृदय विदीर्ण हो जाता है। मैं लिखूंगी तो असंगत नहीं। यहाँ चित्त अति व्याकुल हो रहा है। क्या सुनती थी और क्या देखती हूँ? टूटे-फूटे फूस के झोंपड़े, मिट्टी की दीवारें, घरों के सामने कूड़े-करकट के बड़े-बड़े ढेर, कीचड़ में लिपटी हुई भैंस, दुर्बल गायें, तो ये सब दृश्य देखकर जी चाहता है कि कहीं चली जाऊं। मनुष्यों को देखो, तो उनकी सोचनीय दशा है। हड्डियाँ निकली हुई हैं। वे विपत्ति की मूर्तियाँ और दरिद्रता के जीवित चित्र हैं। किसी के शरीर पर एक बेफटा वस्त्र नहीं है और कैसे भाग्यहीन कि रात-दिन पसीना बहाने पर भी कभी भरपेट रोटियाँ नहीं मिलतीं। हमारे घर के पिछवाड़े एक गड्ढा है। माधवी खेलती थी। पाँव फिसला तो पानी में गिर पड़ी। यहाँ किम्वदन्ती है कि गड्ढे में चुड़ैल नहाने आया करती है और वे अकारण यह चलने वालों से छेड़-छाड़ किया करती है। इसी प्रकार द्वार पर एक पीपल का पेड़ है। वह भूतों का आवास है। गड्ढे का तो भय नहीं है, परन्तु इस पीपल का वास सारे-सारे गाँव के हृदय पर ऐसा छाया हुआ है कि सूर्यास्त ही से मार्ग बन्द हो जाता है। बालक और स्त्रियाँ तो उधर पैर ही नहीं रखते! हाँ, अकेले-दुकेले पुरुष कभी-कभी चले जाते हैं, पर पे भी घबराये हुए। ये दो स्थान मानो उस निकृष्ट जीवों के केन्द्र हैं। इनके अतिरिक्त सैकड़ों भूत-चुड़ैल भिन्न-भिन्न स्थानों के निवासी पाये जाते हैं। इन लोगों को चुड़ैलें दीख पड़ती हैं। लोगों ने इनके स्वभाव पहचान लिये हैं। किसी भूत के विषय में कहा जाता है कि वह चढ़ता है तो महीनों नहीं उतरता और कोई दो-एक पूजा लेकर अलग हो जाता है। गाँव वालों में इन विषयों पर इस प्रकार वार्तालाप होता है, मानो ये प्रत्यक्ष घटनाएं हैं। यहाँ तक सुना गया हैं कि चुड़ैल भोजन-पानी माँगने भी आया करती हैं। उनकी साड़ियाँ प्रायः बगुले के पंख की भाँति उज्ज्वल होती हैं और वे बातें कुछ-कुछ नाक से करती हैं। हाँ, गहनों का प्रचार उनकी जाति में कम है। उन्हीं स्त्रियों पर उनके आक्रमण का भय रहता है, जो बनाव श्रृंगार किए, रंगीन वस्त्र पहिने, अकेली उनकी दृष्टि में पड़ जाएं। फूलों की बास उनको बहुत भाती है। सम्भव नहीं कि कोई स्त्री या बालक रात को अपने पास फूल रखकर सोए।

भूतों के मान और प्रतिष्ठा का अनुमान बड़ी चतुराई से किया गया है। जोगी बाबा आधी रात को काली कमरिया ओढ़े, खड़ाँऊ पर सवार, गाँव के चारों ओर भ्रमण करते हैं और भूले-भटके पथिकों को मार्ग बताते हैं। साल-भर में एक बार उनकी पूजा होती है। वह अब भूतों में नहीं वरन् देवताओं में गिने जाते हैं। वह किसी भी आपत्ति को यथाशक्ति गाँव के भीतर पग नहीं रखने देते। इनके विरुद्व धोबी बाबा से गाँव-भर थर्राता है। जिस वृक्ष पर उसका वास है, उधर से यदि कोई दीपक जलने के पश्चात् निकल जाए, तो उसके प्राणों की कुशलता नहीं। उन्हें भगाने के लिए दो बोलत मदिरा काफी है। उनका पुजारी मंगल के दिन उस वृक्ष तले गाँजा और चरस रख आता है। लाला साहब भी भूत-सा बन बैठे हैं। यह महाशय पटवारी थे। उन्हें कई पंडित असामियों ने मार डाला था। उनकी पकड़ ऐसी गहरी है कि प्राण लिये बिना नहीं छोड़ती। कोई पटवारी यहाँ एक वर्ष से अधिक नहीं जीता। गाँव से थोड़ी दूर पर एक पेड़ है। उस पर मौलवी साहब निवास करते हैं। वह बेचारे किसी को नहीं छेड़ते। हाँ, वृहस्पति के दिन पूजा न पहुँचायी जाय, तो बच्चों को छेड़ते हैं।

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