सदाबहार >> वरदान (उपन्यास) वरदान (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘वरदान’ दो प्रेमियों की कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले...
कैसी मूर्खता है! कैसी मिथ्या भक्ति है! ये भावनाएं हृदय पर वज्रलीक हो गयी हैं। बालक बीमार हुआ कि भूत की पूजा होने लगी। खेत-खलिहान में भूत का भोग जहाँ देखिये, भूत-ही-भूत दीखते हैं। यहाँ न देवी है, न देवता। भूतों का ही साम्राज्य है। यमराज यहाँ चरण नहीं रखते, भूत ही जीव-हरण करते हैं। इन भावों का किस प्रकार सुधार हो? किमधिकम्।
विरजन
मझगाँव
प्यारे,
बहुत दिनों के पश्चात आपकी प्रेम-पत्री प्राप्त हुई। क्या सचमुच पत्र लिखने का अवकाश नहीं? पत्र क्या लिखा है, मानो बेगार टाली है। तुम्हारी तो यह आदत न थी। क्या वहाँ जाकर कुछ और हो गये? तुम्हें यहाँ से गए दो मास से अधिक होते हैं। इस बीच में कई छोटी-बड़ी छुट्टियाँ पड़ीं, पर तुम न आये। तुमसे कर बाँधकर कहती हूँ-होली की छुट्टी में अवश्य आना। यदि अबकी बार तरसाया तो मुझे सदा उलाहना रहेगा।
यहाँ आकर ऐसा प्रतीत होता है, मानो किसी दूसरे संसार में आ गयी हूँ। रात को शयन कर रही थी कि अचानक हा-हा, हू-हू का कोलाहल सुनायी दिया! चौंककर उठ बैठी! पूछा तो ज्ञात हुआ कि लड़के घर-घर से उपले और लकड़ी जमा कर रहे थे। होली माता का यही आहार था। यह बेढंगा उपद्रव जहाँ पहुँच गया, ईंधन का दिवाला हो गया। किसी की शक्ति नहीं जो इस सेना को रोक सके। एक नम्बरदार की मड़िया लोप हो गयी। उसमें दस-बारह बैल सुगमतापूर्वक बाँधे जा सकते थे। होली वाले कई दिन से घात में थे। अवसर पाकर उड़ा ले गये। एक कुरमी का झोंपड़ा उड़ गया। कितने उपले बेपता हो गये। लोग अपनी लकड़ियाँ घरों में भर लेते हैं। लालाजी ने एक पेड़ ईंधन के लिए मोल लिया था। आज रात को वह भी होली माता के पेट में चला गया। दो-तीन घरों के किवाड़ उतर गये। पटवारी साहब द्वार पर सो रहे थे। उन्हें भूमि पर ढकेलकर लोग चारपाई ले भागे। चतुर्दिक ईंधन की लूट मची है। जो वस्तु एक बार होली माता के मुख में चली गयी, उसे लाना बड़ा भारी पाप है। पटवारी साहब ने बड़ी धमकियां दीं। मैं जमाबन्दी बिगाड़ दूँगा, खसरा झूठाकर दूँगा, पर कुछ प्रभाव न हुआ! यहाँ की प्रथा ही है कि इन दिनों होली वाले जो वस्तु पा जायें, निर्विघ्न उठा ले जायें। कौन किसकी पुकार करे? नवयुवक पुत्र अपने पिता की आंख बचाकर अपनी ही वस्तु उठवा देता है। यदि वह ऐसा न करे, तो अपने समाज में अपमानित समझा जाय।
खेत पक गए हैं, पर काटने में दो सप्ताह का विलम्ब है। मेरे द्वार पर से मीलों का दृश्य दिखाई देता है। गेहूँ और जौ के सुथरे खेतों के किनारे-किनारे कुसुम के अरण और केसर वर्णपुष्पों की पंक्ति परम सुहावनी लगती है। तोते चतुर्दिक मंडलाया करते हैं।
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