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वरदान (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :259
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8670

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‘वरदान’ दो प्रेमियों की कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले...


इतने में माली की दृष्टि उस पर पड़ी, पहिले तो घबराया, फिर निकट आकर बोला– यह कौन खड़ा है? यह कौन है?

इतना सुनना था कि कमलाचरण झपटकर बाहर निकला और फाटक की ओर जी छोड़कर भागा। माली एक डंडा हाथ में लिए ‘लेना-लेना, भागने न पाये?’ कहता हुआ पीछे-पीछे दौड़ा। यह वही कमला है जो माली को पुरस्कार व पारितोषिक दिया करता था, जिससे माली सरकार और व हुजूर कहकर बातें करता था। वही कमला आज उसी माली के सम्मुख इस प्रकार जान लेकर भागा जाता है। पाप अग्नि का वह कुण्ड है जो आदर और मान, साहस और धैर्य को क्षणभर में जलाकर भस्म कर देता है।

कमलाचरण वृक्षों और लताओं की ओट में दौड़ता हुआ फाटक से बाहर निकला। सड़क पर ताँगा जा रहा था, उस पर जा बैठा और हाँफते-हाँफते अशक्त होकर गाड़ी के पटरे पर गिर पड़ा। यद्यपि माली ने फाटक तक भी पीछा न किया था, तथापि कमला प्रत्येक आने-जाने वाले पर चौंक-चौंककर दृष्टि डालता था, मानो सारा संसार शत्रु हो गया है। दुर्भाग्य ने एक और गुल खिलाया। स्टेशन पर पहुँचते ही घबराहट का मारा गाड़ी में जाकर बैठ गया, परन्तु उसे टिकट लेने की सुधि ही न रही और न उसे यह खबर थी कि मैं किधर जा रहा हूँ। वह इस समय इस नगर से भागना चाहता था, चाहे कहीं हो। कुछ दूर चला था कि अंग्रेज अफसर लालटेन लिए आता दिखाई दिया। उसके संग एक सिपाही भी था। वह यात्रियों का टिकट देखता चला आता था; परन्तु कमला ने जाना कि कोई पुलिस अफसर है। भय के मारे हाथ-पाँव सनसनाने लगे, कलेजा धड़कने लगा। जब तक अंग्रेज दूसरी गाड़ियों में जाँच करता रहा, तब तक तो वह कलेजा कड़ा किये किसी प्रकार बैठा रहा, परन्तु ज्यों उसके डिब्बे का फाटक खुला कमला के हाथ-पाँव फूल गये, नेत्रों के सामने अंधेरा छा गया। उतावलेपन से दूसरी ओर का किवाड़ खोलकर चलती हुई रेलगाड़ी पर से नीचे कूद पडा। सिपाही और रेलवाले साहब ने उसे इस प्रकार कूदते देखा तो समझा कि कोई अभ्यस्त डाकू है, मारे हर्ष के फूले न समाये कि पारितोषिक अलग मिलेगा और वेतनोन्नति अलग होगी, झट लाल बत्ती दिखायी। तनिक देर में गाड़ी रुक गई। अब गार्ड, सिपाही और टिकट वाले साहब कुछ अन्य मुनष्यों के सहित गाड़ी से उतर पड़े और लालटेन ले-लेकर इधर-उधर देखने लगे। किसी ने कहा– अब उसकी धूल भी न मिलेगी, पक्का डकैत था। कोई बोला– इन लोगों को कालीजी का इष्ट रहता है, जो कुछ न कर दिखायें, थोड़ा है। परन्तु गार्ड आगे ही बढ़ता गया। वेतन वृद्वि की आशा उसे आगे ही लिए जाती थी। यहाँ तक कि वह उस स्थान पर जा पहुँचा, जहाँ कमला गाड़ी से कूदा था। इतने में सिपाही ने खड्ढे की ओर संकेत करके कहा– देखो, वह श्वेत रंग की क्या वस्तु है? मुझे तो कोई मनुष्य-सा प्रतीत होता है और लोगों ने देखा और विश्वास हो गया कि अवश्य ही दुष्ट डाकू यहाँ छिपा हुआ है, चलकर उसको घेर लो ताकि कहीं निकलने न पावे, तनिक सावधान रहना डाकू प्राण पर खेल जाते हैं। गार्ड साहब ने पिस्तौल सँभाली, मियाँ सिपाही ने लाठी तानी। कई स्त्रियों ने जूते उतार कर हाथ में ले लिये कि कहीं आक्रमण कर बैठा तो भागने में सुभीता होगा। दो मनुष्यों ने ढेले उठा लिए कि दूर ही से लक्ष्य करेंगे। डाकू के निकट कौन जाय, किसका जी भारी है? परन्तु जब लोगों ने समीप जाकर देखा तो न डाकू था, न डाकू भाई; किन्तु एक सभ्य-स्वरूप, सुन्दर वर्ण, छरहरे शरीर का नवयुवक पृथ्वी पर औंधे मुख पड़ा है और उसके नाक और कान से धीरे-धीरे रुधिर बह रहा है।

कमला ने इधर साँस तोड़ी और विरजन एक भयानक स्वप्न देखकर चौंक पड़ी। सरयूदेवी ने विरजन का सोहाग लूट लिया।

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