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वरदान (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :259
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8670

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‘वरदान’ दो प्रेमियों की कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले...

(१९) दुःख दशा

सौभाग्यवती स्त्री के लिए उसका पति संसार की सबसे प्यारी वस्तु होती है। वह उसी के लिए जीती है और मारती है। उसका हँसना-बोलना उसी के प्रसन्न करने के लिए और उसका बनाव-श्रृंगार उसी को लुभाने के लिए होता है। उसका सोहाग जीवन है और सोहाग का उठ जाना उसके जीवन का अन्त है।

कमलाचरण की अकाल-मृत्यु वृजरानी के लिए मृत्यु से कम न थी। उसके जीवन की आशाएँ और उमंगें सब मिट्टी में मिल गयीं। क्या-क्या अभिलाषाएँ थीं और क्या हो गया? प्रति-क्षण मृत कमलाचरण का चित्र उसके नेत्रों में भ्रमण करता रहता। यदि थोड़ी देर के लिए उसकी आँखें झपक जातीं, तो उसका स्वरूप साक्षात नेत्रों के सम्मुख आ जाता।

किसी-किसी समय में भौतिक त्रय तापों को किसी विशेष व्यक्ति या कुटुम्ब से प्रेम-सा हो जाता है। कमला का शोक शान्त भी न हुआ था बाबू श्यामाचरण की बारी आयी। शाखा भेदन से वृक्ष को मुरझाया हुआ न देखकर इस बार दुर्दैव ने मूल ही काट डाला। रामदीन पाँडे बड़ा दंभी मनुष्य था। जब तक डिप्टी साहब मझगाँव में थे, दबका बैठा रहा, परन्तु ज्योंही वे नगर को लौटे, उसी दिन से उसने उत्पात करना आरम्भ किया। सारा गाँव-का-गाँव उसका शत्रु था। जिस दृष्टि से मझगाँव वालों ने होली के दिन उसे देखा, वह दृष्टि उसके हृदय में काँटे की भाँति खटक रही थी। जिस मण्डल में मझगाँव स्थित था, उसके थानेदार साहब एक बड़े घाघ और कुशल रिश्वती थे। सहस्रों की रकम पचा जायें, पर डकार तक न लें। अभियोग बनाने और प्रमाण गढ़ने में ऐसे अभ्यस्त थे कि बाट चलते मनुष्य को फाँस लें और वह फिर किसी के छुड़ाये न छूटे। अधिकार वर्ग उसने हथकण्डों से विज्ञ था, पर उनकी चतुराई और कार्य-दक्षता के आगे किसी का कुछ बस न चलता था। रामदीन थानेदार साहब से मिला और अपने हृद्रोग की औषधि माँगी। उसके एक सप्ताह पश्चात् मझगाँव में डाका पड़ गया। एक महाजन नगर से आ रहा था। रात को नम्बरदार के यहाँ ठहरा। डाकुओं ने उसे लौटकर घर न जाने दिया। प्रातःकाल थानेदार साहब तहकीकात करने आये और एक ही रस्सी में सारे गाँव को बाँधकर ले गये।

दैवात् मुकदमा बाबू श्यामाचारण की इजलास में पेश हुआ। उन्हें पहले से सारा कच्चा-चिट्ठा विदित था और ये थानेदार साहब बहुत दिनों से उनकी आंखों पर चढ़े हुए थे। उन्होंने ऐसी बाल की खाल निकाली की थानेदार साहब की पोल खुल गयी। छः मास तक अभियोग चला और धूम से चला। सरकारी वकीलों ने बड़े-बड़े उपाय किये परन्तु घर के भेदी से क्या छिप सकता था? फल यह हुआ कि डिप्टी साहब ने सब अभियुक्तों को बेदाग छोड़ दिया और उसी दिन सायंकाल को थानेदार साहब मुअत्तल कर दिये गये गए।

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