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वरदान (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :259
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8670

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‘वरदान’ दो प्रेमियों की कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले...


अब प्रति मास ‘कमला’ के पृष्ठ विरजन की कविता से सुशोभित होने लगे और ‘भारत महिला’ को लोकमत ने कवियों के सम्मानित पद पर पहुंचा दिया। ‘भारत महिला’ का नाम बच्चे-बच्चे की जिह्वा पर चढ़ गया। कोई समाचार पत्र या पत्रिका ऐसी न थी जो ‘भारत महिला’ की रचनाओं की इच्छुक न हो। पत्र खोलते ही पाठकों के नेत्र ‘भारत महिला’ को ढूंढने लगते। हां, उसकी दिव्य शक्तियां अब किसी को विस्मय में न डालती उसने स्वयं कविता का आदर्श उच्च कर दिया था।

तीन वर्ष तक किसी को कुछ भी पता न लगा कि ‘भारत महिला’ कौन है। निदान प्राण नाथ से न रहा गया। उन्हें विरजन पर भक्ति हो गयी थी। वे कई मास से उसका जीवन-चरित्र लिखने की धुन में थे। सेवती के द्वारा धीरे-धीरे उन्होंने उसका सब जीवन चरित्र ज्ञात कर दिया और ‘भारत महिला’ के शीर्षक से एक प्रभाव– पूरित लेख लिखा। प्राणनाथ ने पहिले लेख न लिखा था, परन्तु श्रद्वा ने अभ्यास की कमी पूरी कर दी थी। लेख अत्यन्त रोचक, समालोचनात्मक और भावपूर्ण था।

इस लेख का मुद्रित होना था कि विरजन को चारों तरफ से प्रतिष्ठा के उपहार मिलने लगे। राधाचरण मुरादाबाद से उसकी भेंट को आये। कमला, उमादेवी, चन्द्रकुंवर और कितनी ही पुरानी सखियां जिन्होनें उसे विस्मरण कर दिया था प्रति दिन विरजन के दर्शनों को आने लगीं। बड़े बड़े गणमान्य सज्जन जो ममता के अभिमान से हकिमों के सम्मुख सिर न झुकाते थे, विरजन के द्वार पर दर्शन को आते थे। चन्द्रा स्वयं तो न आ सकी, परन्तु पत्र में लिखा– जी चाहता है कि तुम्हारे चरणें पर सिर रखकर घंटों रोऊँ।

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