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अमेरिकी यायावर

योगेश कुमार दानी

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9435

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उत्तर पूर्वी अमेरिका और कैनेडा की रोमांचक सड़क यात्रा की मनोहर कहानी


मेरी एन मुझसे लगभग 4-5 फीट ही आगे होगी, परंतु उससे लगभग 18-20 फीट की दूरी पर अपने पिछले पैरों पर एक काला भालू खड़ा हुआ था। भालू की उँचाई खड़े होने पर लगभग 5 फीट के आस-पास रही होगी। खड़ा हुआ भालू हमें एकटक देख रहा था। अपने हाथ में फोन और जाबरा का स्पीकर लिए हुए मैं कब मेरी एन के पीछे पहुँच गया मुझे पता ही नहीं चला।  
कुछ क्षणों के लिए मेरा मष्तिष्क जैसे बिलकुल सुन्न हो गया था। फिर अचानक मुझे होश आया और रेडइट वेबसाइट की फोरम में किसी के दिए हुए सुझावों में से एक याद आया। उसने लिखा था, “जंगली भालुओं से सीधे आँखे मिलाना उनको ललकारने जैसा होता है।“ इस जंगल में हमारी जानकारी के अनुसार आस-पास केवल हम लोग ही थे। ट्रेल की शुरुआत में मिले डच लोगों के बाद हमें कोई नहीं मिला था। न ऊपर जाता हुआ और न ही नीचे आता हुआ। बरबस मेरी इच्छा हुई की मैं पुल से सीधा वापस जाऊँ और इस पुल को पानी से हटा दूँ ताकि भालू उस पर चढ़कर दूसरी तरफ न आ सके। फिर इसके पहले कि मैं इस बारे में कुछ कहने की गलती करूँ, मुझे स्वयं याद आ गया कि पानी की धार तो वैसे ही कहीं-कहीं इतनी पतली हो जाती है कि एक साधारण मनुष्य आसानी से छलांग लगाकर पार कर सकता है, फिर भालू की तो बात ही क्या है।  
मैंने ने अपने आपको बहुत प्रयत्न करके वहाँ से भागने से रोका और साहस करके मेरी एन के ठीक पीछे पहुँच कर उससे अधिकारपूर्वक भाषा में बोला, “सीधे इसकी आँखों में मत देखना। मैं देखता हूँ कि इस स्थिति में हमें क्या करना चाहिए।“ हम वापस उसी रास्ते पर भाग नहीं सकते थे जिस पर आये थे क्योंकि यदि वापस जाते तो हमें पर्वत पर चढ़ाई करनी होती। इस अवस्था में बहुत तेज गति से भाग नही सकते थे। साथ ही ऐसी अवस्था में भालू हमारे पीछे से आक्रमण कर सकता था। तात्कालिक तौर पर हमें सीधे कोई इशारा किये बगैर भालू को यह संदेश देना था कि अन्य मनुष्यों की तरह हमसे न ही उलझने में उसकी भलाई थी। पर ऐसा करते कैसे!
मेरा ध्यान गया कि भालू की खूँखार आँखें बड़े ही निर्मम भाव से हमें देख रहीं थी। बचपन में भारत में मदारियों के साथ जो भालू देखे थे, यह भालू उनसे निश्चित तौर पर काफी बड़ा था। शायद भूरे भालू जितना ऊँचा तो नहीं, पर मनुष्यों को आसानी से हानि पहुँचा सकने में सक्षम! रेडइट फोरम के सदस्य के अनुसार यदि भालू को भगाना हो तो उसके सामने अपने हाथों को सिर से ऊपर करके अपने आकार को जितना अधिक बड़ा हो सके उतना बड़ा दिखाओ और इसके साथ-साथ अधिकारपूर्वक और तेज आवाज में आपस में बातें करो। कुल मिलाकर ऐसा कुछ करो, जिससे कि भालू को लगे कि कई लोग हैं और वह मनुष्यों से उलझे बगैर अपने रास्ते चला जाये। मेरे पास रिवाल्वर या गन आदि तो कोई थी नहीं, जिससे हम भालू को डरा सकते थे। मैने मेरी एन से फुसफुसा कर कहा, “अपने दोनों हाथ ऊपर करके भालू की आँखों में देखे बगैर, तेज आवाज में दूर जाने के लिए इस तरह कहो जिस प्रकार मैं कहने जा रहा हूँ।“ हड़बड़ाहट में मैं सोच रहा था कि अपने फोन से ऐसी क्या आवाज निकालूँ कि उससे तेज ध्वनि का और बहुत सारे लोगों के वहाँ पर होने का अहसास हो। सकपकाहट में मेरे फोन पर बजने वाला गाना भी “पाज” हो गया था।  
स्क्रीन पर रुके हुए गाने के आगे वाले गाने के बोल, “आज तो जुनली रातमाँ...” दिख रहे थे। मैंने काँपते हाथों से फोन को टैप कर दिया। इस बीच ब्लू टूथ की सर्विस पूरी तरह जागृत होकर अपने आप जाबरा स्पीकर से जुड़ गई थी। तलाश फिल्म का गाना बड़ी तेज आवाज में जाबरा के स्पीकर पर बजने लगा। उसके साथ ही पूरी ताकत से मैं भी “होऽऽऽ... होऽऽऽ... होऽऽऽ” की आवाजें करने लगा। इस अचानक हुई आवाज ने मेरी एन को तो बुरी तरह चौंकाया ही, साथ ही भालू को भी चौंका दिया। भालू अभी तक तो अनिश्चित था, परंतु अचानक हुए शोर से चौंककर उसने तुरंत अपना रास्ता बदल लिया और हमारे सामने से ही बायीं से दायी ओर ट्रेल काटता हुआ वह जंगल में चला गया। 

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